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पृष्ठ:मुद्राराक्षस.djvu/९५

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मुद्राराक्षस नाटक प्रवेश कराया। जब वैरोधक मंदिर में घुसने लगा तब आपका भेजा दारुवर्म बढ़ई उसको चंद्रगुप्त समझ कर उसके ऊपर गिराने को कल का बना अपना तोरण लेकर सावधान हो बैठा। इसके पोछे चद्रगत के अनुयायी राजा सब बाहर खड़े रह गए और जिस बर्बर को आपन चद्रगुप्त के मारनेके हेतु भेजा था वह भी अपनी सोने २४० को छड़ी की गुप्ती, जिसमें एक छोटी कृपाण थी, लेकर वहाँ खड़ा होगया। राक्षस-दोनों ने बेठिकाने काम किया। हाँ फिर १ विराधगुप्त-तब उस हथिनी को मार कर बढ़ाया और उसके दौड़ चलने से कल के तोरण का लक्ष जो चंद्रगुप्त के धोखे वैरोधक पर किया गया था, चूक गया और वहाँ बबेर जो चंद्रगुप्त का आजरा देखता था वह बेचारा उसी कल के तोरण से मारा गया। जब दारुवर्म ने देखा कि लक्ष तो चूक गए अब मारे जायेंगे तब उसने उस कत की लोहे की कील से उस ऊँचे तोरण के स्थान ही पर से चंद्रगुप्त के धोखे तपस्वी वैरोधक को हथिनी ही पर मार डाला । २५. ___ राक्षस-हाय ! दोनों बातें कैसे दुःख को हुई कि चद्रगुप्त तो काल से बच गया और दोनों बेचारे बर्बर और वैरोधक मारे गए। (पाप ही आप ) दैव ने इन दोनों को नहीं मारा, हम लोगों को मारा। (प्रकाश) और दारुम बहई क्या हुआ ? विराधगुप्त-उसको वैरोधक के साथ के मनुष्यों ने मार डाला। राक्षस-हाय ! बड़ा दुःख हुआ! हाय प्यारे दारुवर्म का हम लोगों से वियोग हो गया। अच्छा! उस वैद्य अभयदत्तने क्या किया? विराधगुप्त-महाराज! सब कुछ किया। राक्षस-(हर्ष से ) क्या चद्रगुप्त मारा गया ? विराधगुप्त-दैव ने न मरने दिया। राक्षस-शोक से ) तब क्या फूलकर कहते हो कि सब कुछ किया। २६.