पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/१०५

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मुद्रा-राक्षस

मलयकेतु---मित्र भागुरायण! वह कौन सा काम है?

भागुरायण---कुमार! मन्त्री के जी की बातें बड़ी गुप्त हैं। कोन जाने? इससे देखिये अभी सुन लेते हैं कि क्या कहते है।

राक्षस---अजी! भली भांति कहो।

करभक---सुनिये---जिस समय आपने आज्ञा दी कि करभक तुम जाकर वैतालिक स्तनकलस से कह दो कि जब-जब चाणक्य चन्द्रगुप्त की आज्ञा भङ्ग करे तब-तब तुम ऐसे श्लोक पढ़ो जिससे उसका जी और भी फिर जाय।

राक्षस---हॉ, तब?

करभक---तब मैंने पटने में जाकर स्तनकलस से आपका संदेसा कह दिया।

राक्षस---तब?

करभक---इसके पीछे नन्दकुल के विनाश से दुःखी लोगों का जी बहलाने के हेतु चन्द्रगुप्त ने कुसुमपुर में कौमुदी महोत्सव होने की डौड़ी पिटा दी और उसको बहुत दिन से बिछुड़े हुए मित्रो के मिलाप की भांति पुरके निवासियो ने बड़ी प्रसन्नतापूर्वक स्नेह से मान लिया।

राक्षस---(आँसू भर कर) हा देव नन्द।

जदपि उदित कुमुदन सहित, पाइ चाँदनी चन्द।
तदपि न तुम बिन लसत है, नृपससि! जगदानन्द॥

हॉ फिर क्या हुआ?

करभक---तब चाणक्य दुष्ट ने सब लोगों के नेत्र के परमानन्द- दायक उस उत्सव को रोक दिया और उसी समय