पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/११०

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चतुर्थ अङ्क

से दुःख था नन्दकुल के मित्रों को कुछ दुःख नहीं है, क्योकि वह लोग तो यही सोचते हैं कि इसी कृतघ्न चन्द्रगुप्त राज्य के लोभ से अपना पितृकुल नाश किया है, पर क्या करें उनका कोई आश्रय नहीं है इससे चन्द्रगुप्त के आसरे पड़े हैं, जिस दिन आपको शत्रु के नाश में और अपने पक्ष के उद्धार मे समर्थ देखेंगे उसी दिन चन्द्रगुप्त को छोड़ कर आप से मिल जायंगे, इसके उदाहरण हमी लोग हैं।

मलयकेतु---आर्य! चन्द्रगुप्त के हारने का एक यही कारण है कि कोई और भी है?

राक्षस---और बहुत क्या होंगे एक यही बड़ा भारी है।

मलयकेतु---क्यों आर्य? यही क्यो प्रधान है? क्या चन्द्रगुप्त और मन्त्रियों से आप अपना काम करने में असमर्थ हैं।

राक्षस---निरा असमर्थ है।

मलयकेतु---क्यों?

राक्षस---यों कि जो आप राज्य-सम्भालते हैं या जिनका राज राजा और मन्त्री दोनो करते हैं वह राजा ऐसे हो तो हो; परन्तु चन्द्रगुप्त तो कदापि ऐसा नहीं है। चन्द्रगुप्त एक तो दुरात्मा है दूसरे वह तो सचिव ही के भरोसे सब काम करता है; इससे वह कुछ व्यवहार जानता ही नहीं, तो फिर वह सब काम कैसे कर सकता है? क्योकि---

लक्ष्मी करत निवास अति, अचल सचिव नृप पाय।
पै निज बाल सुभाव सो, इकहि तजत अकुलाय॥