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पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/१२६

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पञ्चम अङ्क

हो चुकी है। इसमें पहले तीन तो मलयकेतु का राज चाहते हैं और बाकी दो माल खजाना हाथी चाहते हैं। जिस तरह महाराज ने चाणक्य को उखाड़ कर मुझको प्रसन्न किया उसी तरह इन लोगो को भी प्रसन्न करना चाहिए। यही राजसंदेश है।

मलयकेतु—(आप ही आप) क्या चित्रवर्म्मादि भी हमारे द्रोही हैं? तभी राक्षस में उन लोगो की ऐसी प्रीति है। (प्रकाश) विजये? हम अमात्य राक्षस को देखा चाहते हैं।

प्रतिहारी—जो आज्ञा (जाती है)


की पश्चिमोत्तर सीमा पर उस समय सिकन्दर के मरने से बड़ा ही गडबड था इससे कुछ शुद्ध वृत्तान्त नहीं मिलता। सम्भव है कि कवि ने जो कुछ उस समय सुना, लिख दिया। वा यह भी सम्भव है कि यह देश और नाम केवल काव्यकल्पना हो। इतिहासों से यह भी विदित हैं कि मेगास्थनिस (Megasthencs) नामक एक राजपूत सिल्यूकस का चन्द्रगुप्त की सभा में आया था। सम्भव है कि इसी का नाम मेघाक्ष लिखा हो। यदि शुद्ध राजतरंगिणी का हिसाब लीजिए तो एक दूसरी ही लड़ मिलती है। इसके मत से ६५३ बरस कलियुग बीते महाभारत का युद्ध हुआ। फिर १०१ बरस में तीन गोनर्द हुए, अब ७५४ ग॰ क॰ संवत् हुआ। इसके पीछे १२६६ बरस के राजाओं का वृत्त नहीं मालूम। (२०२० ग॰ क॰) इस समय के ८६७ वर्ष पीछे उत्पलाक्ष, हिरण्याक्ष और हिरण्यकुल इस नाम के राजा हुए। २७९० ग॰ क॰ के पास इनका राज आरम्भ हुआ और २८८७ ग॰ क॰ तक रहा। इस वर्ष गत कलि ४६८२ इससे चन्द्रगुप्त का समय २८०० ग॰ क॰ हुआ तो उत्पलाक्ष हिरण्य वा हिरण्याक्ष राजा राजतरंगिणी के मत से चन्द्रगुप्त के समय में थे। (राजतरंगिणी प्र॰ त॰ २८७ श्लोक से)