पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/१७५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६०
मुद्रा-राक्षस

सन् १२९२ ई० में पहले इस देश में मुसलमानों का राज्य हुआ। उस समय पटना, बनारस के वन्दाबत राजपूत राजाइन्द्र दमन के अधिकार में था। सन् १२२५ में अलतिमश ने गायासु दमीन को मगध प्रान्त का स्वतन्त्र सूबेदार नियत किया। इसके थोड़े ही काल पीछे फिर हिन्दू लोग स्वतन्त्र होगये। फिर मुसल-्मानो ने लड़ कर अधिकार किया सही, किन्तु झगड़ा नित्य होता रहा। यहाँ तक कि सन् १३९३ में हिन्दू लोग स्वतन्त्र रूप में फिर यहॉ के राजा हो गए और तीसरे महमूद की बड़ी भारी हार हुई। यह दो सौ बरस का समय भारतवर्ष का पैतोंस्टाइन का समय था। इस समय में गया के उद्धार के हेतु कई महाराणा उदयपुर के देश छोड़ कर लड़ने आये[१]। ये और पञ्जब से लेकर गुजरात दक्षिण तक के हिन्दू मगध देश में जाकर प्राणत्याग करना बड़ा

  1. गया के भूगोल में पण्डित शिवनरायण त्रिवेदी भी लिखते हैं––"औरंगावाद से तीन कोस अग्निकोण पर देव बड़ी भारी बस्ती है। यहाँ श्री भगवान् सूर्यनरायण का बड़ा भारी सङ्गीन पश्चिम रुख का मन्दिर है। यह मन्दिर देखने से बहुत प्रचीन जान पड़ता है। यहाँ कातिक और चैत्र की छठ को बड़ा मेंला लगता है। दूर दूर के लोग यहाँ आते और अपने लडकों का मुण्डन छेदन आदि की मनौती उतारते हैं। मन्दिर से थोडी दूर दक्खिन बाजार के पूरब और सूर्यकुण्ड का तालाब है। इस तालाब से सटा हुआ और एक कच्चा तालाब है उसमे कमल बहुत फूलते हैं। देवराजधानी है। यहाँ के राजा महाराजा उदयपुर के घराने के मड़ियार राजपूत हैं। इस घराने के लोग सिपाहगरी के काम में बहुत प्रसिद्ध होते आये हैं। यहाँ के महाराज श्री जयप्रकाश सिंह के° सी° एस° आई° बड़े सूर सुशील और उदार मनुष्य थे। यहाँ से दो कोस दक्खिन, कंचनपुर में राजा साहिब का बाग और, मकान देखने लायक बना है। देव से तीन कोस पूरब मउगा एक छोटी सी बस्ती है, उसके पास पहाड़ के ऊपर देव के सूर्यमन्दिर के ढंग