पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/१८३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१६८
मुद्रा-राक्षस

के रङ्ग-विरङ्ग के चमकदार और कारचोबी के होते हैं। बदन पर अकसर गहने, भौ महदी से रंगते हैं और दाढ़ी मूछ पर खिजाव करते हैं। छतरी, सिवाय बड़े आदमियो के और कोई नहीं लगा सकता। रथों में लड़ाई के समय घोड़े और मञ्जिल काटने के लिये बैल जोते जाते हैं। हाथियों पर भारी जर्दोजी की मूल डालते हैं। सड़कों की मरम्मत होती है। पुलिस का अच्छा इन्तिजाम है। चन्द्रगुप्त के लशकर मे औसत चोरी तीस रुपये रोज से जियादा नहीं सुनी जाती है। राजा जमीन फी पैदावार से चौथाई लेता है।

चन्द्रगुप्त सन् ई० के ९१ बरस पहले मरा, उसके बेटे बिन्दुसार के पास यूनानी एलची दयोमेक्स ( Diamachos ) आया था परंतु वायुपुराण में उसका नाम भद्रसार और भागवत में वारिसार और मत्स्यपुराण में सायद बृहद्रथ लिखा है। केवल विष्णुपुराण बौद्ध ग्रन्थों के साथ विदुसार बतलाता है। उसके १६ रानी थीं और उनसे १०१ लड़के, उनमें अशोकों जो पीछे से “धर्म्म अशोक” कहलाया, बहुत तेज था, उज्जैन का नाजिम था। वहाँ के एक सेठ ‡ की लड़की देवी उससे व्याही थी। उसी से महेन्द्र लड़का और संघमिता (जिसे सुमित्रा भी कहते है) लड़की हुई थी।


__________



‡सेठ श्रेष्ठ का अपभ्रंश है, अर्थात् जो सबसे बड़ा हो।