पृष्ठ:मुद्राराक्षस नाटक.djvu/९४

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तृतीय अङ्क

कितना भी मान करो उन्हें थोड़ा ही दिखलाता है तो इसका क्या उपाय है। यह तो अनुग्रह का वर्णन हुआ, अब दण्ड का सुनिये, कि यदि हम इन सबों को प्रधान पद पाकर के जो बहुत दिनो से नन्दकुल के सर्वदा शुभाकाँक्षी और साथी रहे दण्ड देकर दुखी करें तो नन्दकुल के साथियों का हम पर से विश्वास उठ जाय इस से छोड़ ही देना योग्य समझा सो इन्हीं सब हमारे भृत्यों के पक्षपाती बन कर राक्षस के उपदेश से म्लेच्छराज की बड़ी सहायता पाकर और अपने पिता के वध से क्रोधित हो कर पर्वतक का पुत्र कुमार मलयकेतु हम लोगों से लड़ने को उद्यत हो रहा है, सो यह लड़ाई के उद्योग का समय है उत्सव का समय नहीं, इससे गढ़, के संस्कार के समय कौमुदी-महोत्सव क्या होगा? यही सोच कर उसका प्रतिषेध कर दिया।

चन्द्रगुप्त---आर्य! मुझे अभी इसमें बहुत कुछ पूछना है।

चाणक्य---भली भॉति पूछो, क्योंकि मुझे भी बहुत कुछ कहना है।

चन्द्रगुप्त---यह पूछता हूँ---

चाणक्य---हाँ! मैं भी कहता हूँ।

चन्द्रगुप्त---यह कि हम लोगो के सब अनर्थो की जड़ मलयकेतु है उसे आप ने भागतो समय क्यों नहीं पकड़ा?

चाणक्य---वृषल! मलयकेतु के भागने के समय भी दोही उपाय थे या तो मेल करते या दण्ड देते, जो मेल करते तो आधा राज देना पड़ता और जो दण्ड देते तो फिर यह हम लोगों को कृतघ्नता सब पर प्रसिद्ध हो जाती कि