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पृष्ठ:मेघदूत का हिन्दी-गद्य में भावार्थ-बोधक अनुवाद.djvu/१६

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मेघदूत।


के समय राम-लक्ष्मण के साथ सीताजी कुछ समय तक रही थीं। इस पर्वत के जलाशयों में सीताजी ने स्नान भी किया था। इस कारण उनका जल अत्यन्त पवित्र है। रामगिरि सदा हरा भरा रहता है। उस पर तरह तरह की लताओं और तरुओं की बहुत अधिकता है। इस कारण उसके आश्रमों में सदा शीतल छाया बनी रहती है। ऐसे ही छायादार एक सुन्दर आश्रम में यक्ष रहने लगा।

उस पर्वत पर चले जाने से यक्ष की पत्नी उससे छूट गई। इस कारण उसे बड़ा दुःख हुआ। वह बेहतर दुबला हो गया। उसका सारा शरीर सूख गया। नौवत यहाँ तक पहुँची कि बहुत दुबला हो जाने में सोने का रत्नजटित कड़ा उसके हाथ से गिर गया और उसे खबर भी न हुई। इस तरह वहाँ रहते उसे कई महीने बीत गये जब आषाढ़ का महीना लगा तब उसने देखा कि बादलों का समुदाय पर्वत के शिखर पर एसा लटक रहा है जैसे काला काला विशाल-काय हाथी किसी किले के परकोटे या दीवार को अपने मस्तक की ठोकरों से गिरा रहा हो। इस अनुपम प्राकृतिक दृश्य को वह बड़े चाव से देखने लगा। पर इससे उसका दुःख दूना हो गया। उसे तत्काल ही अपनी प्रियतमा का स्मरण हो आया। उसकी आँखे आँसुओं से डबडबा आई। कुछ देर तक वह न मालूम मनही मन क्या सोचता रहा। अपने आगमन से केतकी को कुसुमित करनेवाले मेघों की घटा उमड़ने पर संयोगियों के भी मन की दशा कुछ की कुछ हो जाती है। फिर भला यक्ष के सदृश वियोगी का हृदय यदि उत्कण्ठित हो उठे और वियागाग्नि से जलने लगे तो आश्चर्य हो क्या?