सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:मेघदूत का हिन्दी-गद्य में भावार्थ-बोधक अनुवाद.djvu/३३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१९
मेघदूत।

तेरी बदौलत उनकी यह इच्छा भी पूर्ण हो जायगी और रुधिर पकने के कारण वैसे गजचर्म्म से उमा को जो उद्वंग होता है, वह भी न होगा। अतएव पार्वतीजी टकटकी लगाकर तुझे पीतिवर्ग नेत्रों से प्रसन्नतापूर्वक देखेंगी। मित्र मेघ! देख, तेरे लिए यह कितना अलभ्य लाभ होगा।

उज्जयिनी में स्त्रियाँ अपने प्रेमियों से मिलने के लिए बहुधा उनके निर्द्दिष्ट स्थानों को रात के समय जाया करती हैं। सावन-भादों में और तो क्या, राजमार्गों तक में अन्धकार छाया रहता है। तुझसे आकाश व्याप्त हो जाने पर तो वह अँधेरा और भी घना हो जायगा—यहाँ तक घना कि वह सूई से छिद्र जाने योग्य हो जायगा। अतएव, इतनी कृपा करना कि कसौटी पर सुवर्ण की रेखा के समान बिजली चमका कर उन अभिसारिकाओं को राह अवश्य दिखा देना, तेरे इस कार्य्य से अन्धकार को घना कर देने के अपराध का मार्जन हो जायगा। अकारण ही किसी को किसी से कष्ट पहुँच जाय तो उसका प्रतिकार करना ही सज्जनों का कर्तव्य है। हाँ, एक बात और है रात को कहीं पानी बरसाने और गरजने न लगना। ऐसा करने से वे डर जायँगी, क्योंकि वे स्वभाव ही से भीरु हैं। फिर किसी को व्यर्थ सताना भी तो न चाहिए। अन्धकार की वृद्धि करके गरजने और बरसने से तेरे अपराध की मात्रा और भी अधिक हो जायगी।

रात अधिक बीत जाने पर वहीं किसी ऊँचे से महल की छत के ऊपर ठहर जाना। परन्तु महन्त ऐसा ढूँढ़ना जिस पर कबूतर आनन्द से सो रहे हों और इतनी भी खटक न होती हो कि वे