अतएव, शिवजी अपनी इस सेवा का तुझे अवश्यही फल देंगे! देख, चूकना मत। इस बात को याद रखना।
शिवजी की शुश्रूषा करने और उन्हें रिझाने के लिए महाकाल के मन्दिर में नर्तकी नारियाँ भी रहती हैं। उनमें से कुछ तो शिवजी को अपना नाच दिखाती हैं और कुछ उन पर रत्न-सचित डॉडीवाले चमर ढारती हैं। जिस समय वे नाचती हैं उस समय फ़र्श पर ज़ोर से उनके पैर पड़ने के कारण उनकी कटि-किङ्किणिया बड़ाही श्रुतिसुखद शब्द करती हैं। चमर वे ऐसे लीला-ललाम ढंँग से ढारती हैं कि देखते ही बनता है। चमर चलाते चलाते वे थक जाती हैं, पर उनके हाथ फिर भी अपनी लीला दिखाते ही जाते हैं। उन नर्तकियों के नखक्षतों पर जब तेरे वर्षा बिन्दु पड़ेंगे तब शीतलता पहुँचने के कारण उनको बहुत आराम मिलेगा और वे काले-काले भैरों की पंक्ति के सदृश अपने दीर्थ कटाक्षों से तुझे देखेंगी। वे मनही मन कहेंगी---"यह दयालु मेघ हमारे क्षतों को ठंढा करने के लिए अच्छा आ गया।"इस प्रकार वे अपनी हार्दिक कृतज्ञता प्रकट करेंगी।
महाकाल के मन्दिर के चारों तरफ़, लम्बी भुजाओं के समान ऊँचे ऊँचे तरुओंवाले उद्यान के ऊपर, जब तू, सायङ्काल, मण्डल बाँध कर छा जायगा और तेरे उस नील मण्डल पर, नवीन जवा-पुष्प के सदृश सायङ्कालीन अरुणता का प्रतिबिम्ब पड़ेगा, तब बड़ा ही अलौकिक दृश्य दिखाई देगा। उस समय तू रुधिर टपकते हुए नये गज-धर्म की समता को पहुँच जायगा। ताण्डव-नृत्य के समय शिवजी को ऐसा ही चर्म ओढ़ने की इच्छा होती है। सो