पृष्ठ:मेघदूत का हिन्दी-गद्य में भावार्थ-बोधक अनुवाद.djvu/३५

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मेघदूत ।


न सकेगा। इन बातों के मित्रा और तरह में भी वह तुझे रिझानें की चेष्टा करेंगी । तू देखेगा कि नीलाभ अन्न के बहाने उमने नोनी साड़ी पहन रक्खी है । लहरों का उछाला हुआ उसका वह वारि- वमन, तटरूपी कदि से कुछ खिमक कर, बंत की लटकी हुई डान से लग रहा है। अतएव, वह हाथ में पकड़ मारकबा गया है। उसे इस दशा में दम्ब तुझे ऐमा मालूम होगा जैसे घर से चलने समय पति अपनी प्रवल्यत्पतिका पन्नी का वन हाथ से बीच रहा है। इस कारण वह उसकी कमर से मरक गया है । मला ऐसी विलामवती नदी का नोला नीला नीर लेकर, कुछ देर वहाँ ठहरे बिना, तू कैसे प्रस्थान कर सकेगा' औरों की तो मैं नहीं कहता. परन्तु ऐसा अवनर प्राप्त होने पर झटपट चन देना रसिकों के लिए अवश्य ही असम्भव है।

गम्भीरा छोड़ने पर तुझे देवगिरि होकर जाना पड़ेगा। पहले पहल तेरे वरनने पर पृथ्वो सं जो मुन्दर मुगन्धि निकलती है उमस सुरभि-सम्पन्न होनेवाली. जगन्नी गृलर के फलों को परि- पक्क करनेवाली,अपने झकारों की मधुर ध्वनि से कानों को मुम्ब देनेवाली हाथियों की प्यारी वायु, उस समय, मार्ग में तेरी अच्छी सेवा करेगी। इस कारण पूर्वोक गम्भीरा के नट पर प्राम हुए तेरे परिश्रम का शीघ्र ही परिहार हो जायगा। देवगिरि में कुमार कार्तिकेय का मन्दिर है । इन्द्र की सेनाओं की रक्षा के लिए शशिमौलि शङ्कर ने आदित्य से भी अधिक तेजस्वी अपने जिस तेज को अग्नि के मुख में डाला था उसी से कार्तिकेय की उत्पत्ति है । देवताओं के सेनापति बन कर, वारकासुर का संहार