कर चुकने पर, उन्होंने देवगिरि ही में रहना पसन्द किया। तब से वे वहीं रहते हैं । वहाँ पहुँच कर तू पुष्पमय हो जाना। फिर आकाशगङ्गा के जल से धाये हुए फूलों की धारा बरसा कर सुर- सेनानी षडानन को स्नान कराना ! वहाँ तुझे उनका वाहन मोर भी मिलेगा। अपने पुत्र का वाहन होने के कारण, उस पर पार्वती का बड़ा प्रेम है। तार से जड़े हुए चँदोवेवाले उसके पंख यदि गिर पड़ते हैं तो पार्वतीजी उन्हें तत्काल उठा कर बड़े स्नेह से, अपने कानों पर, कमल-दल के सदृश, खाँस लंती हैं । कुमार-स्वामी के मोर की आँखों के कोय यांना स्वभाव ही से शुभ्र है। परन्तु पासही बैठे हुए शिवजी के भाल-चन्द्रमा की किरणों के याग से उनकी शुभ्रता और भी अधिक हो जाती है। पार्वतीनन्दन और स्वयं पार्वती के प्यार उस मोर की भी कुछ सेवा करना । पर्वत की गुफाओं के भीतर तक चली जानेवाली घार गर्जना करके देर तक उसे खब नचाना।
शरजन्मा षडानन की आराधना करके तू आगे बढ़ना । देवगिरि छोड़ने पर मार्ग में शायद तुझे मस्त्रीक सिद्ध लोग मिलेंगे। वीणा उनके साथ होगी। वे कार्तिकेय को वीणा-वादन सुनाने के लिए प्रति दिन आया करते हैं । यदि कहीं तू उन्हें दिखाई दिया तो वे तेरी राह छोड़ कर हट जायँगे! वे कहेंगे कि यदि यह पानी बरसाने लगेगा तो हमारी वीणायें भीग जायँगी। फिर हम इसका क्या कर लेंगे। अतएव, आवो इसके रास्ते ही न जायँ ।
कुछ दूर जाने पर तुझे चर्मरावती ( चम्बल) नदी मिलेगी। सुनते हैं, उसकी उत्पत्ति राजा रन्तिदेव के गो-मेध यज्ञों में बाल-