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पृष्ठ:मेघदूत का हिन्दी-गद्य में भावार्थ-बोधक अनुवाद.djvu/३८

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मेघदूत ।


पैने बाणों की वर्षा की थी जिस तरह कि तू कमलों पर वारि-धारा को वर्षा करता है । इसी कुरुक्षेत्र के पाम ही सरस्वती नदी बहती है । तुझसे श्रीकृष्ण के बड़े भाई हलधर का परिचय कराने की ज़रूरत नहीं। तू उन्हें अच्छी तरह जानता ही होगा । कौरवों और पाण्डवों. दोनों, को अपना भाई जान कर वे महाभारत के नरनाशी युद्ध मे नहीं शरीक हुए। उन्होंने कहा-हमारे लिए जैसे पाण्डव है वैसे ही कौरव भी हैं। हम क्यों एक का पक्ष लेकर दूसरे को मारने की चेष्टा करें। इसी से समर-विमुख होकर वे पूर्वोक्त सरस्वती नदी के तट पर चले गये । वहीं वे कुछ काल तक रहे । वहाँ उन्होंने एक काम किया। उन्हें मदिरा से बड़ा प्रेम था । उसे वे पहले अपनी प्रिय- तमा पत्नी रेवती को पिला लेते थे तब स्वयं पोते थे। पीते समय मदिरा भरे हुए प्याले में रेवतीजी के लोल लोचनों की छाया पड़ती थी। पत्नी के नेत्रों का प्रतिबिम्ब पड़ने के कारण बलदेवजी की प्रीति उस मदिरा पर और भी अधिक हो जाती थी। परन्तु सर स्वती के तट पर उन्होंने अपनी उस प्यारी मदिरा का एक-दम ही परित्याग कर दिया। उसके बदले वे सरस्वती के पावन पय का ही सेवन करते रहे। उसके सामने उन्होंने सुरा को असार समझा। इस घटना से सरस्वती के सलिल की महिमा का तू अच्छी तरह अनुमान कर सकेगा। अतएव, भाई मेघ ! तू पुण्यसलिला सरस्वती का अवश्य ही अवगाहन करना । उसके जल के आचमन से तेरा अन्तःकरण सर्वथा शुद्ध हा जायगा; तेरा शरीर-मात्र ही काला रह जायगा । सो शरीर की कालिमा कालिमा नहीं; हृदय में कालिमा न होना चाहिए