म्भन की गई गायों में है। उनके मधिर में हो वह उत्पन्न हुई है।
वह पृथ्वी पर, नदी के रूप में, उन राजा की मूर्जिमती कीर्ति के
समान है। उसके पास पहुँच कर उम्मका यथेष्ट सम्मान करना।
उनका पाट है तो खूब चौड़ा । पर, आकाचारी देवताओं को दुर
में वह पतला जान पड़ता है । उन्हें उनकी पतली पतली धारा,
पृथ्वी के कण्ठ में पड़ी हुई मानियों की मात्रा के महश, दिखाई
देती है। विष्णु के वर्ग का चार, श्याम शर्गरधारी न जत्र उम नदी
का जल पीने के लिए उस पर झूकेगा तब उन व्योमचारो देवताओ
को न ऐमा मालूम होगा जैसे मतियां की उम माला के बीचों-
बीच एक बड़ासा नीन्नम लगा हुआ है।
चर्मरावती का उतर कर तू सी गगाजा रन्तिदव को राजधानी 'दशपुर को जाना । वहा को वनिनायें बड़ी चञ्चन्ह हैं । भौहे मरोड़ने और कुटिल-कटाक्ष-पात करने में उनकी प्रवीगवा मर्वत्र प्रसिद्ध है। वे तुझे बड़े कौतूहल से दब्वेगी । जिम समय वे सब पलके उठा उठा कर काली काली पुतलीवाल अपने बड़े बड़े शुभ्र नेत्र तेरी तरफ़ कर देंगी उस समय ऐसी शाभा होगी माना फेके हुए कुन्द के सित सुमनों की ओर भार की पाति जा रही है। तू उनको दर्शन दिये बिना न रहना । वे तेरे दर्शनों को सर्वधा पात्र हैं:
आगे तुझे ब्रह्मावर्त मिलेगा । उस पर अपनी छाया डालता
हुआ तू कुरुक्षेत्र को जाना। यह वही कुरुक्षेत्र है जहा महाभारत-
युद्ध में लाखों क्षत्रियों का नाश हुआ था और जहां अर्जुन ने अपने
गाण्डीव नामक धनुष से राजाओं के मुखों पर उस तरह असंख्य