पृष्ठ:मेघदूत का हिन्दी-गद्य में भावार्थ-बोधक अनुवाद.djvu/४१

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मेघदूत ।


जाने की चेष्टा करेंगे। उनकी यह चेष्टा सफल ना होने हो कर नहीं, क्योंकि तू लांघा जा ही नही नकता। हो इस चेस्ठा मंच अपने हाथ-पैर अवश्य नाड़ लेग । जिम समय तुझ शरभ का यह तमाशा दिखाई द उम ममय उन पर अालों की मात्र ही बनधार वर्षा करके उन्हें उपहास का पात्र बनाये बिना न रहना , प्रारम्भ ही में निपाल यत्न करवानों में में भला कोई भी गमा होगा जिसकी हमो न हुई हो ।

हिमालय पर अर्द्धन्दुशेखर शङ्कर की चरणशिला -शिला के ऊपर उनके पैर का चिव-है। मिद्ध और माधु लांग उमक निन्य पूजा करते हैं । उनके दर्शन ने श्रद्धालु जनों के मारे पाप छूट जाते हैं और शरीगन्न हाने पर उन्हें सदा सर्वदा के लिए शिवजी के गणों की पदवी मिन्न जाता है अत्यन्त नम्र होकर, भान-भाव- पूर्वक, उस चरण-शिला की नू भी प्रदक्षिणा करना। इसमें तुझे भी उमी फल की प्राप्ति होगा जो सिद्धादिकों को होनी है। कहा पर तुझे एक और भी काम करना होगा : कहाँ बाम के वृक्ष बहुन हैं। उनके छेदों में जब वायु भरदी है तब उनसं मुरली-रव के सदृश मधुरध्वान निकलती है। इधर ता यह होता है उधर किनारया बई ही अनुराग से त्रिपुर-विजच-सम्बन्धी यशोगान करके शिवजी को रिझाती हैं। ऐसे मौके पर यदि तु हिमालय की गुफा में अपनी घार गर्जना भर देगा तो मृदङ्ग माबजने लगेगा। इस प्रकार शिवजी के सङ्गीत का सारा ठाठ बन जायगा। मुरली, नदङ्ग और गान तीनों का समा बँध जायगा;

धीर धीर हिमालय के सभी शिखरो को पार करने पर उसके