सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:मेघदूत का हिन्दी-गद्य में भावार्थ-बोधक अनुवाद.djvu/४३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२९
मेघदूत ।


पार्वती को साथ लेकर शिवजी जब कैलाम के क्रीडा-शैल पर टहलने निकलते हैं तब अपने एक हाथ से माप का कड़ा उनार डालते हैं। उसी बिना कई के हाथ को अपने हाथ में धान कर पार्वतीजी उनकं माथ घूमा करती है। यदि कहीं तुझ वे इसी तरह टहलती हुई मिल जाये तो त एक काम करना । अपने अन्तर्गत जल का स्तम्भन करके अपने शरीर को ज़रा कड़ा कर लेना। फिर सीढ़ी के रूप में हो जाना! इससे तेरे ऊपर पैर रस्वती हुई पार्वतीजी सुख ने ऊँची जगहों पर चढ़ती चली जायेंगी ! उन्हें न चढ़ने में ही कुछ कष्ट होगा और न पैर रखने ही में ! पहाड़ों पर चलने से पत्थरों के टुकड़े पैरों में चुभते हैं । पर तू चिकना है । इम कारण तेरे शरीर पर वे बटाखट पैर रग्वनी चली जायेंगी; मन्चरों के चुभ जाने का डर न रहेगा।

हाँ, एक बात में मैं तुझे सचेत कर देना चाहता हूँ। कैलास पर देवाङ्गनायें तुझे पकड़ कर अवश्य अपने घर ले जायँगी। वहां वे तुझे पिचकारी या जल छिड़कन की कन्त बनावेंगी, अथवा तुझससे वे फौवारे का काम लेंगी। यदि न उनकी इच्छा के अनु- मार जल का छिड़काव न करंगा तो वे अपने कानों में जड़े हुए होरी से तेरे शरीर को घिस घिस कर जबरदस्ती उसमें जल निका- लंगी। उनके इस खेल में यदि न थक कर पीने सीन हो जाथ और फिर भी तेरा छुटकारा न हो तो तु कर्ण-कटार गर्जन करके उन्हें डरा देना । तेरा कुलिश-कर्कश नाद सुन कर वे अवश्य ही तुझे छोड़ देंगी।

सुर-सुन्दरियों में झुटकारा पाकर मानम-सरोवर के उस