पृष्ठ:मेघदूत का हिन्दी-गद्य में भावार्थ-बोधक अनुवाद.djvu/४८

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मेघदूत ।

के इन विभ्रम-विशिखों को तू ऐसा वैसा न समझना । जिम पर्टी लक्ष्य करके ये चलाये जाते हैं उसे में घायल किये बिना नहीं रहते है यं अपने निशान पर लग कर ही रहते हैं; कभी निष्फल नहीं जाते। इनकी मार से कोई भी अपना बचाव नहीं कर सकता।

अलका पहुँच कर तू मेरे घर जाना । वह, कुवेर के महलो से उत्तर की ओर कुछ ही दूर आगे, है। मैं तुझे अपने घर की पह- चान बताता हूँ। उसके द्वार पर अनेक रङ्गों से रँगा हुआ, इन्द्रधनुष के ममान शोभाशाली, तोरण तुझे दूर से दिखाई देगा। घर के उद्यान में नन्दार का एक बाल वृक्ष है । उसे मेरी प्रियतमा पत्नी ने पुत्रवत् पाला है फूलों के गुच्छों से लद कर उसकी डालियाँ इतनी झुक जाती हैं कि महजही उन तक हाथ पहुँच सकता है । उसके फूल तोड़ने में कुछ भी कष्ट नहीं होता।

उसी उद्यान-उसी पुष्प-वाटिका-में एक जलाशय है। उसकी सीढ़ियों पर पन्ने जड़े हुए हैं वे सीढ़ियां मरकत-शिलाओं की हैं। जलाशय के जल पर नीलम के समान सुन्दर नालोंवाले कनक- कमल छाये रहते हैं। उसका जल इतना निम्मल और इतना मीठा है कि वहां रहनेवाले हंसों को तुझे देख कर भी-वर्षा-ऋतु आजाने पर भी-मानसरोवर की याद नहीं आती। वह मरोवर यद्यपि अलका के पामही है, दूर नहीं, तथापि मरे उद्यान में हंसों को इतना सुख है कि वे मान-सरोवर को भूल सा गये हैं।

पूर्वोक्त जलाशय के तीर पर मेरा क्रीडाशैल-मन बहलाने का कृत्रिम पर्वत-है। उसके शिखर पर सुन्दर सुन्दर नीलम लगे हुए हैं। कनक कदली की दर्शनीय वाड से वह शैल चारों तरफ घिरा हुआ है।