वहाँ वायु के उड़ाये हुए तेरे मश, और भी वादल आया करते
है।वे अलका के महलों के ऊपर पहुँच कर शरारन करने लगते
मौके वे-मौके बरस कर पहले तो वे महनों के गिनों में पूरी
ई चौका और खींची गई चित्रावलियों को विगाड़ देते हैं, फिर
तापलध से डर कर खिड़कियां के रास्त भाग खड़े होने हैं। उस
ममय सिमिट कर व धुर्वे के समान पतले हो जाते हैं। इस काम
मे व वड़ा ही पटुता दिवाने हैं : व्यभिचारी मनुष्य के मश,
युवे का रूप धर कर, खिड़की की राह भागना व खत्र जानते हैं।
अलका को किम किस विशेषता का मैं वर्णन करूं । वहाँ घर घर में चन्द्रकान्त-मगियां हैं। वं बहुधा शय्याओं के उपर, रेशम की डोरियों से बंधी हुई. ममहरी की छत से लटका करती हैं। आकाश मेघमुक्त होने पर जव चन्द्रमा की चाक किरणों उन पर पड़ती है तब उनसे अन्त के कग टपकने लगते हैं। उनको शीतलता से सुन्दरियों की मुरत-ग्लानि दूर होने में देर नहीं लगती । देखना, आकाश में फैल कर कलाधर की किरणों के आने के मार्ग में कहीं रुकावट न पैदा करना।
मनोज इस बात को अच्छी तरह जानता है कि कुवेर के सखा
साक्षान् पिनाकपाणि शङ्कर वही रहते हैं। अतएव, उनकं डर से वह
भौरों की प्रत्यञ्चावालं अपने चाप को चढ़ाने का बहुत ही कम
साहस करता है । शायद ही कभी वह उसे उटाता होगा। परन्तु
चाप न चढ़ाने पर भी उसका काम हो ही जाता है; वह नहीं
रुकता । उसके धनुष का काम वहाँ की स्त्रियां कं म्रमायुक्त नेत्रो"
से चलाये गये कुटिल-कटाक्षरूपी शरों से हो जाती है । वनिताओं