कालिदास के परवर्ती कवियों को इतना पसन्द आया है कि इसकी छाया पर हंस दूत, पदाङ्क-दूत, पवन-दूत और कोकिल-दूत आदि कितने ही दूत-काव्य बन गये हैं; यह इस काव्य की लोकप्रियता का प्रमाण है।
कालिदास को इस काव्य के निर्माण करने का बीज कहां से मिला? इसका उत्तर "इचास्याते पवनतनयं मैथिलीवोन्मुखी सा" इत्यादि इसी काव्य में है-
"इतनो कहत तोहिं मम प्यारी।
जिमि हनुमत को जनकदुलारी॥
सीस उठाव निरखि धन लै है।
प्रफुलित चित ह्वै आदर दै ह्वै॥
यज्ञ की तरह रामचन्द्र का भी वियोग-व्यथा सहनी पड़ी थी। उन्होंने पवनसुत हनूमान को अपना दूत बनाया था। यक्ष ने मेघ को दूत बनाया। मेघ का साथी पवन है: हनुमान की उत्पत्ति पवन से है। अतएव दोनों में पारस्परिक सम्बन्ध भी हुआ। यह सम्बन्ध काकतालीय सम्बन्ध हो सकता है। परन्तु मैथिली के पास रामचन्द्र का सँदेशा भेजना वैसा सम्बन्ध नहीं। बहुत सम्भव है, कालिदास को इसी सन्देश-स्मृति ने प्रेरित करके इस काव्य की रचना कराई हो। बहुत सम्भव है, यह मेघसन्देश कालिदासही का आत्म-सन्देश हो।
कवियों की सम्मति है कि विषय के अनुकूल छन्दोयोजना करने में वर्ण्य विषय में सजीवता सी आ जाती है। वह विशेष खुलता है उसकी सरसता, और सहृदयों को आनन्दित करने की