पृष्ठ:मेघदूत का हिन्दी-गद्य में भावार्थ-बोधक अनुवाद.djvu/७

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मेघदूत।


शक्ति बढ़ जाती है। इस काव्य में श्रृङ्गार और करुण रस के मिश्रण की अधिकता है। यक्ष का सन्देश कारुणिक उक्तियों से भरा हुआ है। जो मनुष्य कारुणिक आलाप करता है, या जो प्रेमोद्रेक के कारण अपने प्रेम-पात्र से मीठी मीठी बातें करता है, वह न तो साँप के सदृश टेढ़ी मेढ़ी चाल चलता है, न रथ के सदृश दौड़ताही है। अतएव उसकी बातें भुजङ्गप्रयात या रथोद्धता या और ऐसेही किसी वृत्त में अच्छी नहीं लगती। वह तो ठहर ठहर कर, कभी धीमे और कभी कुछ ऊँचे स्वर में, अपने मन के भाव प्रकट करता है। अतएव मन्दाक्रान्ता-वृत्त ही उसकी अवस्था के अनुकूल है। इस वृत्त के गुण इसके नाम ही से प्रकट हैं। यही जान कर कालिदास ने इस वृत्त का प्रयोग इस काव्य में किया है। और, यही जान कर, उनकी देखादेखी औरों ने भी दूत-काव्यों में इसी वृत्त से काम लिया है।

कवि यदि अपने मन का भाव ऐसे शब्दों में कहे जिनका मतलब, सुनने के साथ ही, सुननेवाले की समझ में आ जाय तो ऐसा काव्य प्रसाद-गुण से पूर्ण कहा जाता है। जिस तरह पके हुए अङगूर का रस बाहर से झलकता है उसी तरह प्रसाद-गुण-परि प्लुत कविता का भावार्थ शब्दों से झलकता है। इसके हृदयङ्गम होने में देर नहीं लगती। अतएव, जिस काव्य में करुणाद्र-सन्देश और प्रेमातिशय-द्योतक बाते हो उसमें प्रसाद-गुण को कितनी आवश्यकता है, यह सहृदय जनों को बताना न पड़ेगा। प्यार की बात यदि कहते ही समझ में न आ गई---कारुणिक सन्देश यदि कानों की राई से तत्काल ही हृदय में न घुस गया--तो उसे एक प्रकार