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पृष्ठ:मेघदूत का हिन्दी-गद्य में भावार्थ-बोधक अनुवाद.djvu/८

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भूमिका।


निष्फल हो समझिए। प्रेमालाप क समय कोई कोश लेकर नहीं बैठता करुणाक्रन्दन करनेवाले अपनी उक्तियों में ध्वनि और व्यङ्ग्य की पिता नहीं जान बैठते वे तो सोधी तरह सरल शब्दों में, अपने जी की बात कहते हैं। यही समझ कर महाकवि कालिदास ने मेघदूत को प्रसादगुण संपूर्ण कर दिया है। यही सोच कर उन्होंने इस काव्य की रचना वैद्र्भी रीति में की है---चुन चुन कर सरल और कामल शब्द रक्खे हैं।

देवताओं, दानवो और मानवों को छोड़कर कवि-कुल-गुरु ने इस काव्य में एक यक्ष को नायक बनाया है। इसका कारण है। यक्षों के राजा कुवेर हैं। वे धनाधिप हैं। ऋद्धियां और सिद्धिया उनकी दासिया हैं। सांसारिक सुख धन ही की बदौलत मान होते हैं। जिनके पास धन नहीं वे इन्द्रियजन्य सुखों का यथेष्ट अनुभव नहीं कर सकते। कुवेर के अनुचर, कर्मचारी और पदाधिकारी सब यक्ष ही हैं। अतएव कुबेर के ऐश्वर्य का थोड़ा बहुत भाग उन्हें भी अवश्यही प्राप्त होता है। इससे जिस यक्ष का वर्णन मेघदूत में है उसके ऐश्वर्यवान् और वैभव-सम्पन्न होने में कुछ भी मन्देह नहीं। उसके घर और उसकी पत्नी आदि के वर्णन से यह बात अच्छी तरह साबित होती है। निर्धन होने पर भी प्रेमीजनों में पति-पत्नी-सम्बन्धी प्रेम की मात्रा कम नहीं होती फिर जो जन्मही से धनसम्पन्न है---जिसने लड़कपन ही से नाना प्रकार के सुख-भोग किये हैं---उसे पत्नी-वियोग होने से कितना दुःख, कितनी हृदय-व्यथा, कितना शोक-सन्ताप हो सकता है, इसका अनुमान करना कठिन नहीं है। ऐसा प्रेमी यदि दो चार दिन के लिए नहीं पूरे साल भर के लिए,