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पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/११

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मेरी आत्मकहानी
 

बनी रही और उन्हीं न समय समय पर मेरे कष्टों का निवारण किया। अस्तु, लाला नानकचंद मुझसे कहा करते थे कि हमारे पूर्वज किसी समय अच्छे प्रतिष्ठित लोगों में थे। लाहौर में हमारा वंश टकसालियों के नाम से प्रसिद्ध था हमारा प्राचीन घर अब तक 'टकसालियों का घर' के नाम में प्रसिद्ध है। मेरे दादा कहा परते थे कि इस घर में टकसाल थी और वहाँ मोहरें ढलती थीं, पर वह कब की क्या किस राजा के समय की बात थी इसका कुछ भी ठीक ठीक पता न दे सके। वे यह भी कहते थे कि जिस घर में टक्साल थी उसे मेरे छोटे दादा लाला पोलोमल ने, इन लोगों के काशी चले आने पर, बेंच डाला। बिक्री हो जाने के अनंतर इस घर में से बहुत-सा गड़ा हुआ धन भी मिला था, पर वह हम लोगों के अश का न था, इसलिये हम लागों के हाथ कुछ भी न लगा। दिनों के फेर से लाला नानकचंद अमृतसर में आकर रहने लगे। मैंने सोचा था कि यदि हरिद्वार के पंडों के यहाँ पुरानी बहियाँ मिल जायँ और उनमें मेरे पूर्वजों का कोई पुराना लेख मिल जाय तो उस सूत्र के आधार पर बहुत कुछ पता लगाया जा सकेगा, पर इस काम में भी सफलता न हुई। अस्तु, जब तक और किसी अनुसंधान से विशेष पता न लग सके तब तक यही मानकर संतोष करना होगा कि मेरे पूर्वज पूर्व काल में लाहौर राज्य के प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से थे तथा उस समय के सभ्रांत लोगों में उनकी गिनती थी। परंतु किसी का समय सदा एक-सा नहीं रहता। ऐसा जान पड़ता है कि किसी घोर विपत्ति के कारण उनकी अवस्था बिगड़ गई और वे