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मेरी आत्मकहानी
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में बर्दवान-वंश के विरुद्ध आंदोलन रहा; अब वह शांत हो गया है अब उसको फिर न उभाड़ना चाहिए। यदि राजा साहब रुपया देना ही चाहते हैं तो वे कोई ऐसा काम करें जो खत्रियों के लिये हितकारी हो। अंत मे सेंट्रल खत्री एजुकेशन कमेटी की स्थापना काशी में हुई और उसके सहायतार्थ बर्दवान राज्य से १००) मासिक मिलने लगा। यह रकम आगे चलकर १२५) या १५०) हो गई और अनेक वर्षों तक निरंतर मिलती रही। कई वर्ष हुए जब कुप्रबंध के कारण बर्दवान-राज्य कोर्ट आफ वार्ड्स के सुपुर्द हुआ तब यह सहायता बंद हो गई। इसका मुझे बहुत दुःख हुआ पर मैं कर ही क्या सकता था। खत्री एजुकेशन कमेटी ने कितने ही छात्रों को सहायता दी और अब तक वह यह कार्य करती जाती है। कई को उसने विलायत जाकर पढ़ने में सहायता दी। मुझे एक घटना का स्मरण है। प्रतापगढ़ के एक खत्री-युवक को एडिनबरा में डाक्टरी पढ़ने के लिये भेजा गया। वे यथा-समय परीक्षा में उत्तीर्ण होकर घर लौटे। मैं उस समय लखनऊ में था। उन्होंने मुझे कहला भेजा कि मैं आगया हूँ, आप मुझसे मिलने पाइए। उनकी धृष्टता और साहस पर मुझे बड़ा दुःख हुआ। जिसकी कृपा से वे विलायत से डाक्टर होकर आए उसी को अपने यहाँ मिलने के लिये बुलाना उनकी धृष्टता थी! खत्री जाति प्रायः अकृतज्ञ पाई गई है। विरले रत्नों को छोड़कर उसमे अधिकांश लोग ऐसे मिलेंगे जो स्वार्थपरायण और कृतज्ञ हैं। खत्री एजुकेशन कमेटी ने सैकड़ों क्या हजारों विद्यार्थियों की आर्थिक सहायता की पर इने-गिने लोगों ने ही जीविकोपार्जन के व्यवसाय