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पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/१४७

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मेरी आत्मकहानी
 

हिंदुस्तानी-अंँगरेजी कोश निकला था,जिसके पीछे से तीन संस्करण हुए थे। इनमे से अंतिम संस्करण बहुत कुछ परिवर्द्धित था। ये सभी कोश रोमन अक्षरों में थे और इनका व्यवहार अंँगरेज यो अंँगरेजी पढ़े-लिखे लोग ही कर सकते थे। हिंदी-भाषा या देव-नागरी अक्षरों में जो सबसे पहला कोश प्रकाशित हुआ था,वह पादरी एम० टी० एडम ने तैयार किया था। इसका नाम"हिंदीकोश" था और यह सन् १८२९ मे कलकत्ते से प्रकाशित हुआ था। तब से ऐसे शब्द-कोश निरंतर बनने लगे,जिनमें या तो हिंदीशब्दो के अर्थ अंँगरेजी में और या अँगरेजी शब्दो के अर्थ हिंदी में होते थे। इन कोशकारों में श्रीयुत एम० डब्ल्यू फैलन का नाम विशेषरूप से उल्लेख करने योग्य है, क्योकि इन्होंने साधारण बोलचाल के छोटे- बडे कई कोश बनाने के अतिरिक्त,कानून और व्यापार आदि के पारिभाषिक शब्दो के भी कुछ कोश बनाये थे। परंतु इनका जो हिंदुस्तानी-अँगरेजी कोश था उसमें यद्यपि अधिकांश शब्द हिंदी के ही थे, फिर भी अरबी, फारसी के शब्दों की कमी न थी;और कदाचित् अदालती लिपि फारसी होने के कारण ही उसमें शब्द फारसी- लिप में, अर्थ अँगरेजी में और उदाहरण रोमन में दिए गए थे। सन् १८८४ में लंदन में श्रीयुत ने० टी० प्लाट्स का जो कोश छपा था,वह भी बहुत अच्छा था और उसमें भी हिंदी तथा उर्दू-शब्दो के अर्थ अंगरेजी भाषा मे दिए गए थे। सन् १८७३ में मु० राधेलाल जी का शब्द-कोश गया से प्रकाशित हुआ था जिसके लिये उन्हें सरकार से यथेष्ट पुरस्कार भी मिला था। श्रीयुत