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मेरी आत्मकहानी
 

नहीं था। अंत सभा ने जब देखा कलमे वो साहित्य-सभा कोश बनवाने का प्रयत्न कर ही रही है, तब उसमे बहुत ही प्रसन्नता पूर्वक निश्चय किया कि अपनी मागे संविन सामग्री साहित्य-सभा को दे दी जाय और यथामाण्य सब प्रकार से उसकी महायता की जाय। प्राय तीन वर्ष तक सभा इसी आसरे में थी कि साहित्य-सभा कोश तैयार करें। परंतु कोश तैयार फग्न का जो यश स्वयं प्राप्त करने की उसकी कोई विशेष इच्छा न थी,विधवान यह यश उसी को देना चाहता था। जब सभा ने देखा कि साहित्य-सभा की ओर से कोश की तैयारी का कोई प्रबंध नहीं रहा है. तब उसने उस काम को स्वयं अपने ही हाथ में लेना निश्चित किया। जब सभा के संचालकों ने आपस में इस विषय की सब बाते पष्ठी लो,तब २३ अगस्त, १९०७ का सभा के परम हितैपो और उन्मादो सदस्य श्रीयुव रेवरेंड ई० ग्रीव्स ने सभा की प्रबंधकारिणी समिति में यह प्रस्ताव उपस्थित किया कि हिंदी के एक बहन् और सर्वागपूर्णा कोश बनाने का भार सभा अपने ऊपर ले और भाव ही यह भी बतलाया कि यह कार्य किस प्रणाली से किया जाय। सभा ने मि०ग्रीव्स के प्रस्ताव पर विचार करके इस विषय में उचित परामर्श देने के लिये अप्रलिखित सज्जनों की एक उपसमिति नियत कर दी--रेवरेंड ई०ग्रीव्स. महामहोपाध्याय पंडित सुधाकर द्विवेदी. पंडित रामनारायण मिश्र वी० ए०, बाबू गोविंददास, बाबू इंद्रनारायणसिंह एम० ए०, लाला छोटेलाल, मुंशी संस्टाप्रसाद, पंडित माधवप्रसाद पाठक और मैं।