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पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/१५०

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मेरी आत्मकहानी
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महावता के लिये दरभंगा-नरेश महाराज सा लक्ष्मीश्वरसिह जी से प्रार्थना की थी। महागज ने भी शिशु-सभा के उद्देश्य की सराहना करते हुए उसकी महायता के लिये १२५) रुपये भेजे थे और उसके साथ सहानुभूति प्रकट की थी। इसके अतिरिक्त आपने कोश का कार्य प्रारंभ करने के लिये भी सभा से कहा था और यह भी आशा दिलाई थी कि आवश्यकता पड़ने पर वे सभा को और भी आर्थिक सहायता देगे। इस प्रकार सभा ने नौ सज्जनो की एक उपसमिति इस संबंध में विचार करने के लिये नियुक्त की; पर उप-समिति ने निश्चय किया कि इस कार्य के लिये बड़े-बड़े विद्वानो की सहायता की आवश्यकता होगी और इसके लिये कम से कम दो वर्ष तक २५०) मासिक का व्यय होगा। सभा ने इस संबंध में फिर श्रीमान् दरभंगा-नरेश को लिखा था, परंतु अनेक कारणों से उस समय कोश का कार्य प्रारंभ नहीं हो सका। अत. सभा ने निश्चय किया कि जब तक कोश के लिये यथेष्ठ धन एकत्र न हो तथा दूसरे आवश्यक प्रबंध न हो जायँ, तब तक उसके लिये आवश्यक सामग्री ही एकत्र की जाय। तदनुसार उसने सामग्री एकत्र करने का कार्य प्रारंभ कर दिया।

मन् १९०४ मे सभा को पता लगा कि कलकत्ते की हिंदी साहित्य-सभा हिदीं-भाषा का एक बहुत बड़ा कोश बनाना निश्चित किया है और उसने इस संबंध में कुछ कार्य भी आरम कर दिया है। सभा का उद्देश्य केवल यही था कि हिंदी में एक बहुत बडा शब्द-कोश तैयार हो जाय;स्वयं उसका श्रेय प्राप्त करने का उनका कोई विचार


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