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मेरी आत्मकहानी
 

सबंध में प्रबंध-कर्तृ-समिति को सम्मनित और महायता देने के लिय एक और बडी समिति बनाई जाने की सम्मति भी दी गई जिसमे हिंदी के समस्त बड़े-बड़े विद्वान् और प्रेमी सम्मिलित हो। उस समय यह अनुमान रिया गया था कि इस काम में लगभग ३०,०००) का व्यय होगा जिसके लिये सभा को सरकार तथा गजा- महाराजारों से प्रार्थना करने का परामर्श दिया गया।

सभा को प्रबंधकारिणी समिति ने उपसमिति को ये बात माननी और तदनुसार कार्य भी प्रारभ कर दिया। शब्द संग्रह के लिए उपसमिति ने जो पुस्तकें बतलाई थी उनमे से शब्द-संग्रह का कार्य भी आरंभ हो गया और धन के लिये अपील भी हुई जिससे पहले ही वर्ष २,३३) के वचन मिले, जिनमे से १,९०२) नगढ भी सभा को प्राप्त हो गए। इनमें से सबसे पहले १,०००) स्वर्गीय माननीय सर सुंदरलाल मी० थाई० ई० ने भेजे थे। सत्य सो यह है कि यदि प्रार्थना करते हो उक्त महानुभाव तुरंत १,०००) न भेज देते तो सभा का कमी इतना उत्साह न बढ़ता और बहुत संभव था कि कोश का काम और कुछ समय के लिये टल जाता । परतु सर सुंदरलाल से १,०००) पाते ही सभा का उत्साह बहुत अधिक बढ़ गया और उसने और भी तत्परता से कार्य करना आरंभ किया। उसी समय श्रीमान महाराज वालियर ने मी १,०००) देने का वचन दिया। इसके अतिरिक्त और भी अनेक छोटी-मोटी रकमों के वचन मिले । तात्पर्य यह कि सभा को पूर्ण विश्वास हो गया कि अब कोश तैयार हो जायगा।