पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/१५४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
मेरी आत्मकहानी
१४९
 

इस कोश के सहायतार्थ सभा को समय-समय पर निम्नलिखित गवर्नमेंटो, महाराजो तथा अन्य सज्जनो से सहायता प्राप्त हुई—संयुक्त प्रदेश की गवर्नमेंट,भारत-गवर्नमेंट, मध्य-प्रदेश की गवर्नमेंट तथा नेपाल, रीवाँ, छत्रपुर, बीकानेर, बर्दवान, अलवर, ग्वालियर, काशमीर, काशी, भावनगर, इंदौर आदि के महाराजो, सर सुंदरलाल, राजा साहब भिनगा, कुंँअर राजेन्द्रसिंह और सर जार्ज ग्रियर्सन आदि से अच्छी सहायता मिली। लगभग २६-२७ हजार के सहायता प्राप्त हुई।

शब्द-संग्रह करने के लिये जो पुस्तकें चुनी गई थी, उन पुस्तको को सभासदो मे बांँटकर उनसे शब्द-संग्रह करने के लिए सभा का विचार था। बहुत-से उत्साही सभासदो ने पुस्तकें तो मँगवा ली,पर कार्य्य कुछ भी न किया। बहुतो ने तो महीनो पुस्तके अपने पास रखकर अंत में ज्यो की त्यो लौटा दी और कुछ लोगों ने पुस्तकें भी हजम कर ली। थोड़े-से लोगो ने शब्द-सग्रंह का काम किया था, पर उनमे भी संतोषजनक काम इने-गिने सज्जनो का ही था। इसमे व्यर्थ बहुत-सा समय नष्ट हो गया; पर धन की यथेष्ट सहायता सभा को मिलती जाती थी, अतः दूसरे वर्ष सभा ने विवश होकर निश्चित किया कि शब्द-संग्रह का काम वेतन देकर कुछ लोगों से कराया जाय। तदनुसार प्राय १६-१७ आदमी शब्द-संग्रह के काम के लिये नियुक्त कर दिए गए और एक निश्चित प्रणाली पर शब्द-संग्रह का काम होने लगा।

आरंभ मे कोश के सहायक संपादक पंडित बालकृष्ण भट्ट, पंडित