पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/१५७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
१५२
मेरी आत्मकहानी
 

सभा ने मुझे कोश का प्रधान सपादक बनाना निश्चित किया। मैंने भी सभा की आजा शिगेधाय्यो करके यह भार अपने ऊपर ले लिया।


सन् १९९० के आरंभ मे शब्द संग्रह का कार्य समाप्त हो गया। जिन स्लिपो पर शब्द लिखे गए थे, उन सस्या अनुमानन.१० लाख थी.जिनमे से आशा की गई थी कि प्राय १ लाख शब्द निकलेगे, और यही बात अंत में हुई भी। जब शब्द-संग्रह का काम हो चुका तब स्लिप- अक्षकम से लगाई जाने लगी। पहले वे स्वर और व्यजनों के विचार से अलग-अलग की गई और तब स्वरो के प्रत्येक अक्षर तथा व्यंजनों के प्रत्येक वर्ग की स्लिप अलग-अलग की गई। जब स्वरों की स्लिपें अक्षर-क्रम से लग गई; तब व्यजनो के वर्गों के अक्षर अलग-अलग किए गए और प्रत्येक अक्षर की स्लिये क्रम से लगाई गई। यह कार्य प्राय एक वर्ष तक चलता रहा।


जिस समय कोश के संपादन का भार मुझे दिया गया था, उसी समय सभा ने यह निश्चित कर दिया था कि पंडित बालकृष्ण भट्ट, पडित रामचंद्र शुक्ल. लाला भगवानदीन क्या बाबू अमोरसिंह कोश के सहायक संपादक बनाए जाय, और ये लोग कोश के संपादन मै मेरी सहायता करें। अक्टूबर १९०९ मे मेरी नियुक्ति काश्मीरराज्य में हो गई जिसके कारण मुझे काशी छोड़कर काश्मीर जाना आवश्यक हुआ। उस समय मैने सभा से प्रार्थना की कि इतनी दूर से कोश का संपादन सुचारु रूप से न हो सकेगा। अत तब 2