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मेरी आत्मकहानी
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करने के लिये कलकत्ते भेजा था जिन्होंने प्राय ढाई मास तक वहाँ रहकर इपीरियल लाइब्रेरी से फ्लोरा और फॉना आफ ब्रिटिश इडिया सिरीज की समस्त पुस्तको में से नाम और विवरण आदि एकत्र किए थे। हिंदी भाषा मे व्यवहृत होनेवाले अंँगरेजी, फारसी, अरबी तथा तुर्की आदि भाषाओं के शब्दो, पौराणिक तथा ऐतिहासिक व्यक्तियों की जीवनियो, प्राचीन स्थानो तथा कहावतो आदि के संग्रह का भी बहुत अच्छा प्रबंध किया गया था। पुरानी हिंदी तथा डिंगल और बुंदेलखंडी आदि भाषाओ के शब्दो का भी अच्छा संग्रह किया गया था। इसमे सभा का मुख्य उद्देश्य यह था कि जहाँ तक हो सके, कोश मे हिंदी-भाषा में व्यवहत होने या हो सकनेवाले अधिक-से-अधिक शब्द आ जाय और यथासाध्य कोई आवश्यक बात या शब्द छूटने न पावे। इसी विचार से सभा ने अंँगरेजी, फारसी, अरबी और तुर्की आदि शब्दो, पौराणिक तथा ऐतिहासिक व्यक्तियो और स्थानों के नामों आदि की एक बड़ी सूची भी प्रकाशित कराके घटाने-बढ़ाने के लिये हिंदी के बड़े-बड़े विद्वानों के पास भेजी थी।

दो ही वर्ष में सभा को अनेक बड़े-बड़े राजा-महाराजाओ तथा प्रांतीय और भारतीय सरकारो से कोश के सहायतार्थ बड़ी-बड़ी रकमे भी मिली,जिससे सभा तथा हिंदी-प्रेमियो को कोश के तैयार होने मे किसी प्रकार का संदेह नही रह गया और सभा बड़े उत्साह से कोश का काम कराने लगी। आरंभ मे सभा ने यह निश्चित नहीं किया था कि कोश का संपादक कौन बनाया जाय, पर दूसरे वर्ष