पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/१६०

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
मेरी आत्मकहानी
१५५
 


सपादन करते थे और तब सब लोग एक साथ मिलकर संपादित शब्दो को दोहराते थे। परंतु बाबू गंगाप्रसाद गुप्त के आ जाने पर दो-दो सहायक सपादक अलग-अलग मिलकर संपादन करने लगे। नवम्बर १९११ मे जब बाबू गंगाप्रमाद गुप्त ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया, तब पडित बालकृष्ण भट्ट पुन. प्रयाग से बुला लिए गए और जनवरी १९१२ मे लाला भगवानदीन भी पुन:इस विभाग में सम्मिलित कर लिए गए तथा मार्च १९१२ से सब सहायक संपादक सपादन के कार्य के लिये तीन भागों में विभक्त कर दिए गए। इस प्रकार कार्य की गति पहले की अपेक्षा बढ़ तो गई, पर फिर भी उसमें उतनी वृद्धि नहीं हुई जितनी वाछित थी। जब मई सन् १९१० में 'अ', 'आ', 'इ' और 'ई' का संपादन हो चुका, तब उसकी कापी प्रेस में भेज दी गई और उसकी छपाई मे हाथ लगा दिया गया। उस समय तक मैं भी काश्मीर से लौटकर काशी आगया था जिससे कार्य निरीक्षण और व्यवस्था का अधिक सुभीता हो गया।

१९१३ मे सपादन-शैली में कुछ और परिवर्तन किया गया। पडित बालकृष्ण भट्ट, बाबू जगन्मोइन वर्मा, लाला भगवानदीन तथा बाबू अमीरसिंह अलग-अलग सपादन-कार्य्य पर नियुक्त कर दिए गए। सब सपादको की लेख-शैली आदि एक ही प्रकार की नहीं हो सकती थी,अत: सबको सपादित स्लिपो को दोहरा कर एकत्रित करने के कार्य पर पडित रामचंद्र शुक्ल नियुक्त किए गए और उनकी सहायता के लिये बाबू रामचंद्र वर्मा रक्खे गए। उस