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मेरी आत्मकहानी
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१९१८ के आरंभ में तीन सहायक संपादको ने "ला" तक संपादन कर डाला और दो सहायक संपादको ने "वि" तक के शब्द दोहरा डाले। उस समय कई महीनों से कोश की बहुत कापी तैयार रहने पर भी अनेक कारणे से उसका कोई अंक छपकर प्रकाशित न हो सका जिसके कारण आय रूकी हुई थी। कोश-विभाग का व्यय बहुत अधिक था और कोश के संपादन का कार्य प्रायः समाप्ति पर था, अत कोश-विभाग का व्यय कम करने की इच्छा से विचार हुआ कि अप्रैल १९१८ कोश का व्यय कुछ घटा दिया जाय। तदनुसार बाबू जगन्मोहन वर्मा, लाला भगवानदीन और बाबू अमीरसिंह त्यागपत्र देकर अपने-अपने पद से अलग हो गए। कोश-विभाग में केवल दो सहायक सपादक पडित रामचंद्र शुक्ल और बाबू रामचंद्र वर्मा तथा स्लिपा का क्रम लगानेवाले और साफ कापी लिखनेवाले एक लेखक पडित ब्रजभूपण ओफा रह गए । इस समय आगे के शब्दो का सपादन रोक दिया गया और केवल पुराने सपादित शब्द ही दोहराए जाने लगे। पर जब आगे चलकर दोहराने योग्य स्लिपें प्राय समाप्त हो चली, और आगे नये शब्दों के संपादन की आवश्यकता प्रतीत हुई, तब सपादन-कार्य के लिये बाबू कालिकाप्रसाद नियुक्त किए गए जो कई वर्षों तक अच्छा काम करके और अत मे त्यागपत्र देकर अन्यत्र चले गए। परतु स्लिपो को दोहराने का पूर्ववत् प्रचलित रहा।