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मेरी आत्मकहानी
 

चलने लगा। 'श्रेयांसि बहुविआनि' के अनुसार इस बड़े काम में भी समय-समय पर अनेक विन्न उपस्थित हुए. पर ईश्वर की कृपा से उनके कारण इस कार्य में कुछ हानि नहीं पहुंँची।

सन् १९१३ में कोश का काम अच्छी तरह चल निकला। वह बराबर नियमित रूप से संपादित होने लगा और संख्याएँ बराबर छपकर प्रकाशित होने लगी। बीच-बीच में आवश्यक्ताअनुसार संपादन-कार्य मे कुछ परिवर्तन भी होता रहा। इसी बीच पंडित बालकृष्ण भट्ट, जो इस वृद्धावस्था मे भी बड़े उत्साह के साथ कोश-संपादन के कार्य में लगे हुए थे, अपनी दिन पर दिन बढ़ती हुई अशक्तता के कारण अभाग्यवश नवंबर १९१३ में कोश के कार्य से अलग होकर प्रयाग चले गए और वहीं थोड़े दिनों बाद उनका देहांत हो गया। उस समय बाबू रामचंद्र वर्मा उनके स्थान पर कोश के सहायक सपादक बना दिए गए और कार्यक्रम में फिर कुछ परिवर्तन की आवश्यकता पड़ी। निश्चित हुआ कि बाबू जगन्मोहन वार्म. लाला भगवानदीन तथा बाबू अमीरसिंह आगे के शब्दों का अलग-अलग संपादिन करें और पडित रामचंद्र शुक्ल तथा बाबू रामचंद्र वर्मा संपादित किए हुए शब्दों को अलग-अलग दोहरा-कर एक मेल करें। इस क्रम में यह सुमीता हुआ कि आगे का संपादन भी अच्छी तरह होने लगा और संपादित शब्द भी ठीक तरह से दोहराए जाने लगे, और दोनों ही कार्यों की गति में भी यथेष्ट वृद्धि हो गई। इस प्रकार १९१७ तक बराबर काम चलता रहा और कोश की १५ संख्याएँ छपकर पर प्रकाशित हो गईं तथा