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मेरी आत्मकहानी
 

होती थी, वहाँ एक ही तरह के अर्थ देनेवाले दो शब्दों का अंतर भी भली भांति स्पष्ट कर दिया जाता था। उदाहरण के लिए "टँगना" और "लटकना" इन दोनो शब्दो को लीजिए। शब्द-सागर मे इन दोनो के अर्थों का अंतर इस प्रकार स्पष्ट किया गया है-'टंगना' और 'लटकना' इन दोनो के मूल भाव में अंतर है। 'टंगना' शब्द में ऊँचे आधार पर टिकने या बढ़ने का भाव प्रधान है और 'लटकना' शब्द मे ऊपर से नीचे तक फैले रहने या हिलने-डोलने का।

इसी प्रकार दर्शन, ज्योतिष, वैद्यक, वास्तुविद्या आदि अनेक विषयों के पारिभाषिक शब्दों के भी पूरे-पूरे विवरण दिए गए हैं। प्राचीन हिदी-काव्यों में मिलने वाले ऐसे बहुत-से शब्द इसमे आए.जो पहले कभी किसी कोश में नहीं आए थे। यही कारण है कि हिंदी-प्रेमियों तथा पाठकों ने आरभ में ही इसे एक बहुमूल्य रम की भाँति अपनाया और इसका आदर किया। प्राचीन हिंदी काव्यो का पढ़ना और पढ़ाना एक ऐसे कोश के अभाव में, प्राय. असंभव था। इस कोश ने इसकी पूर्ति करके वह अभाव बिलकुल दूर कर दिया। पर यहांँ यह भी कह देना आवश्यक जान पड़ता है कि अब भी इसमे कुछ शब्द अवश्य इसलिये छूटे हुए होंगे कि हिंदी के अधिकांश छपे हुए काव्यो में न तो पाठ ही शुद्ध मिलता है और न शब्दों के रूप ही शुद्ध मिलते हैं। इन सब बातों से यह भली भांति स्पष्ट है कि इस कोश में जो कुछ प्रयत्न किया गया है, बिलकुल नए ढंग का है। कदाचित् यहाँ पर यह कह देना अनुपयुक्त न होगा कि कुछ लोगों ने किसी-किसी'