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मेरी आत्मकहानी
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जाति अथवा व्यक्ति-विषयक विवरण पर आपत्तियाँ की हैं। मुझे इस संबंध में इतना ही कहना है कि हमारा उद्देश्य किसी जाति को ऊँची या नीची बनाना न रहा है और न हो सकता है। इस संबंध में न हम शास्त्रीय व्यवस्था देना चाहते थे और न उसके अधिकारी थे। जो सामग्री हमको मिल सकी उसके आधार पर हमने विवरण लिखे। उसमें भूल होना या कुछ छूट जाना कोई असंभव बात नहीं है। इसी प्रकार जीवनी के सबंध मे मतभेद या मूल हो सकती है।

इस प्रकार यह बृहत् आयोजन २० वर्ष के निरंतर उद्योग, परिश्रम और अभ्यवसाय के अनंतर समाप्त हुआ है। इसमे सब मिलाकर ९३,११५ शब्दों के अर्थ तथा विवरण दिए गए है और आरंभ मे हिंदी-भाषा और साहित्य के विकास का इतिहास भी दे दिया गया है। इस समस्त कार्य मे सभा का १,०२,०५०) व्यय हुआ है, जिसमें छपाई आदि का भी व्यय सम्मिलित है। इस कोश की सर्वप्रियता और उपयोगिता का इससे बढ़कर और क्या प्रमाण (यदि किसी प्रमाण की आवश्यकता है) हो सकता है कि कोश समाप्त भी नहीं हुआ और इसके पहले ही इसके खंडो को दो-दो और तीन-तीन बेर छापना पड़ा है और कुछ काल तक इसके समस्त खंड प्राप्य नहीं थे। इसकी उपयोगिता का दूसरा बडा भार प्रमाण यह है कि अभी यह ग्रंथ समाप्त भी नहीं हुआ था वरन् यों कहना चाहिए कि अभी इसका थोड़ा ही अंश छपा था जब कि इससे चोरी करना प्रारंभ हो गया था और यह काम अब तक चला जा रहा है। पर असल और नकल में जो भेद संसार में होता है वही यहाँ भी दीख पड़ता