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पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/१७

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१० मेरी भामकहानी मेरा जन्म प्रापाट शुरु ११ मंगलवार सवन १५३२ (१५ जुलाई, मन् १८७५) में हुआ। ज्योतिष की गणना के प्रनुनार भंग जन्म कुण्डली इस प्रकार की है। मेरे जन्म का साल :८-१ था। नक्षत्र विज्ञासा और लन मकर । इम हिमार मे गशि पश्चिम हु। 1 २२. १० म १ २. यु.शुलपुर 9. मेरा वायकाल अत्यंत आनंद से बीता। मैं सबके लाह-प्यार का पात्र था, विशेषकर इसलिये कि गृहस्थी में और कोई बालक न था। पहले-पहल मैं गुरु के यहाँ बैठाया गया। यहां जाना मुझे अच्छा न लगता था। न जाने के लिये निच बहाने खोजता था। मुझे खूब स्मरण है कि एक दिन न जाने की प्रबल इच्छा होने पर मैंने एक पड्यंत्र रचा। मैं दो-तीन चार पैखाने गया । यस मेरी दादी ने कहा कि लड़के की त्यात अच्छी नहीं है, उसे दस्त पाते हैं. वह गुरु के यहाँ नहीं जायगा । इस प्रकार जान बची। मै कुछ दिनों पक गुरु के यहां पढ़ता रहा। यहाँ मुझे प्रसरो का ज्ञान और गिनती भा गई। यज्ञोपवीत होने पर मेरे दीनागुरु हरमगवान जी हुए। इनसे मैं सस्कृत, व्याकरण तथा कुछ धर्मग्रंथों को पढ़ने .