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मेरी आत्मकहानी
 

गवर्नर सर जेम्स मेस्टन सभा में पधारे। उनको सभा के सब विभाग भली भाँति दिखाए गए। कोश-कार्यालय का निरीक्षण उन्होंने बडे ध्यान से किया। आरंभ से लेकर उसके प्रकाशन तक किस क्रम से काम हो रहा था, यह उन्हें बताया गया। उन लाखो स्लिपो का अवार भी उन्हें दिखाया गया जिन पर मिन्न-भिन्न ग्रंथों से चुनकर शब्द लिखे गए थे। स्लिपो के इस पहाड़ को देखकर वे बड़े प्रभावित हुए। सभा ने उन्हें एक अभिनंदन पत्र देकर अधिक आयिक सहायता के लिये प्रार्थना की थी। जो उत्तर वे लिखकर लाए थे उसमें और सहायता देना अस्वीकार किया गया था। पर जो उत्तर उन्होंने दिया उसमें कहा कि गवर्मेंट और सहायता देने के संबंध में सहानुभूतिपूर्वक विचार करेगी। अब सर जेम्स जाने लगे तो उनके एडीकांग से मैंने उनके उत्तर की टाइप की हुई प्रति मांग ली। उसमें अंत का वाक्य काटकर नया वाक्य हाथ से लिखा था। इससे अनुमान होता है कि स्लिपों के ढेर को देखकर वे बड़े प्रमावित हुए थे। पीछे से गवर्मेंट ने ६,०००)रुपए की और सहायता दी।

(३) भारत-गवर्मेंट ने यह लिखा था कि यदि सभा कोश के लिये २०,०००) रुपया इकट्ठा कर लेगी तो भारत-गवर्मेट ५,०००) रुपया सहायतार्थ देगी। १९,०००) से कुछ ऊपर इकट्ठा हो चुका था, पर २० हजार पूरा नहीं होता था। इस पर एक दिन मैं मिनगानरेश राजषि उदयप्रतापसिंह से मिला और उनसे सब व्यवस्था बताकर मैने निवेदन किया कि आप एक हजार की सहायता दीजिए तो गवमेंट से ५,०००)