अपने जन्मदाता और प्राण
श्रीयुक्त बाबू श्यामसुंदरदास बी० ए०
को
जिनके परिश्रम, उद्योग और बुद्धिबल
तथा
जिनके सपादन में हिंदी-भाषा का सबसे बड़ा कोश हिंदी-
शब्द-सागर
प्रस्तुत हुआ है, उनके सम्मानार्थ तथा कीर्ति-रक्षार्थ काशी-नागरी-
प्रचारिणी सभा द्वारा
निवेदित।
इस संग्रह के संपादक तथा भूमिका-लेखक रायबहादुर महामहोपाध्याय डाक्टर गौरीशंकर हीराचंद्र ओझा थे।
(५) जब समस्त कोश छप गया तब इसकी भूमिका, प्रस्तावना आदि लिखने का प्रबंध किया गया। प्रस्तावना में हिंदी-भाषा और साहित्य का इतिहास है। हिंदी-भाषा का इतिहास मेरी भाषाविज्ञान नामक पुस्तक के अंतिम अध्याय का परिमार्जित और परिवर्धित रूप है। साहित्य का इतिहास पंडित रामचंद्र शुक्ल का लिखा है। शुक्ल जी का स्वभाव था कि वे किसी काम को समय पर नहीं कर सकते थे। उसे टाल रखते थे और प्राय बहुत धीरे-धीरे काम करते थे। इसका मुझे पूरा-पूरा अनुभव था। पहले हम लोगों का विचार था कि शुक्ल जी और मैं दोनों मिलकर साहित्य का इतिहास तैयार करें। इसी व्येय को सामने रखकर वीरगाथाकाल का अध्याय हम लोगों ने लिखा