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मेरी आत्मकहानी
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पंडित हरकर्णनाथ मिश्र के नेतृत्व में कुछ असहयोगी लोगो ने इस स्कूल पर भी आक्रमण किया, पर उनका उद्योग प्राय निष्फल गया, क्योंकि केवल दो या तीन लड़के क्लास छोड़कर बाहर चले गए। मैंने इसकी रिपोर्ट निरीक्षक महाशय से की। उन्होंने यह कहलाया कि उचित प्रबंध करो। मैंने जिन दिशाओ से आक्रमण हो सकता था उनकी दीवालें ऊॅची करवा दी। पीछे से मुझे ज्ञात हुआ कि जब मेरी रिपोर्ट पंडित गोकर्णनाथ मिश्र के पास पहुँची तो उन्होंने कहा कि डिप्टी कमिश्नर स्कूल कमेटी के प्रेसिडेट हैं। स्कूल का गवर्मेंट की सहायता न लेना और उसको ‘National School’ बनाना असभव है। यदि मैं इस समय इन आक्रमणों को रोकने के लिये कुछ करता हूॅ तो इन लोगो की विजय होने पर ये मुझे कुत्तो से नुचवा डालेंगे। इसलिये मेरा कुछ करना कठिन है। हेडमास्टर जो उचित समझें करें। प्राय प्राइवेट स्कूल में यह देखा जाता है कि जब कोई काम अच्छा हो जाता है तो कमेटी के मेंबर यह कह देते हैं―We managed it so beautifully’ और जब कोई बात बिगड जाती है तब कह देते हैं―‘The Head Master spoilt the whole thing’ यद्यपि पडित गोकर्णनाथ मिश्र ने बड़े उत्साह से स्कूल का काम सँभाला और प्राय सब बातों में मुझे उनके पूर्ण सहयोग का सौभाग्य प्राप्त होता रहा, तथापि यह स्थिति बड़ो भयावह थी। मैंने निश्चय कर लिया कि यहाँ रहना ठीक नहीं। यहाँ किसी दिन भारी आपत्ति आवेगी। इस निश्चय के अनुसार मैं किसी दूसरी जगह जीविका-निर्वाह के अवलंब की खोज में हुआ और