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मेरी आत्मकहानी
 

जुलाई १९२१ से मैंने त्यागपत्र दे दिया जो यथासमय स्वीकृत हुआ।

(२) लखनऊ के इस आठ वर्ष के प्रवास मे सुख और दु:ख.दोनो हुए। मेरे बड़े लडके कन्हैयालाल पर किसी आत्मीय जन ने कृत्या का प्रयोग कर दिया, जिससे बारह वर्ष तक घुल-घुलकर सम् १९२६ मे उसका कलकत्ते मे औवों में कालिक दर्द की बीमारी से देहांत हो गया। इस लड़के ने एफ० ए० तक पढ़ा था, कोआपरेटिव सुसाइटी की परीक्षा भी पास की थी। यह कलकत्ते के इलाहाबाद बैंक में काम करने लग गया था। सन् १९१४ के जुलाई मास मे अमृतसर मे इसका विवाह हुआ था। यह संयोग मेरे लिये बड़ा दुखद सिद्ध हुआ।

मेरे दूसरे लड़के नदलाल ने इट्रेंस तक पढा, पर किसी काम पर यह स्थिर न रह सका। दो बैंको में नौकरी की पर वहाँ भी टिक न सका। कई रोजगार किए पर सबसे घाटा उठाया। खान-पान तथा आचार-विचार मे यह उच्छृ खल था। इससे उसे समहणी रोग हो गया और उसी से १९३७ में काशी में इसका देहांत हुआ। इसका विवाह काशी के एक प्रतिष्ठित कपूरवंश मे हुआ था। इसकी स्त्री के माता-पिता का देहांत हो चुका था पर उसका पालन-पोषण तथा सब सस्कार उसके ताया दीवान बालमुकुंद कपूर ने किया था। दीवान बालमुकुद की मृत्यु के बाद उनके दोनो पुत्र दीवान गोकुलचंद और दीवान रामचन्द्र बराबर सद्भाव क्या सज्जनता का बर्ताव करते आ रहे हैं।