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मेरी आत्मकहानी
 

नही, मैं बुड्ढा हो चला हूँ। जो कुछ मैंने कहा-सुना है उसके लिये तुम मुझे क्षमा करो और मै भी तुम्हें क्षमा करता है। बस समझौता हो गया और फिर हम दोनों में सदभाव की स्थापना हो गई।

(२) राजा लक्ष्मणसिंह-लिखित मेघदृत का सस्करण मन् १९२० मे इंडियन प्रेस से प्रकाशित हुआ।

(३) दीनदयालगिरिग्रंथावली और

(४) परमालरासो सन् १९२१ में नागरी-प्रचारिणीग्रंथमाला में संपादित होकर प्रकाशित हुए।

(५-७) सरल संग्रह नूतन संग्रह और अनुलेखमाला नाम की तीन पुस्तके सन् १९१९ मे स्कूलों के लिये नवलकिशोर प्रेस में छपीं।

(८) नागरी-प्रचारिणी पत्रिका को वर्तमान नया रूप १९२० में दिया गया। मैं भी इसके सपादकों में था। पहले वर्ष मे (१) गोस्वामी तुलसीदास की विनयावली और (२) हस्तलिखित हिंदी-पुस्तको की खोज-सवधी मेरे दो लेख पत्रिका में छपे। १३ वर्ष तक पडित गौरीशंकर हीराचंद ओझा इस पत्रिका के सपादक रहे। लेखो का सग्रह आदि करना और उन्हें काट-छाँटकर ठीक करना उनका काम था और छपाना तथा प्रूफ आदि देखना मेरा काम था। १४वे भाग से मैं इस पत्रिका का सपादक हुआ और १८ भाग तक यह काम करता रहा। १८वें भाग को समाप्त करके मैं इस काम से अलग हुआ। पत्रिका के भिन्न-भिन्न अंको मे मेरे ये लेख छपे―

(१) रामावत संप्रदाय (१९२४)

(२) आधुनिक हिंदी के आदि आचार्य (१९२६)