कहा कि यह उनकी गलती थी। परिणाम यह हुआ कि काम एक वर्ष के लिये रुक गया। इस प्रकार की धाँधली प्राय युनिवर्सिटी मे हुआ करती थी।
युनिवर्सिटी में काम करते हुए मुझे अनेक प्रकार के विद्यार्थियों से काम पडा। कुछ विद्यार्थी तो बड़े सात्त्विक स्वभाव के अत्यंत श्रद्धालु तथा विद्याव्यसनी थे। इनमे मुख्यत चार नाम मेरे सामने आते हैं-एक पीतांवरदत्त बड़थ्वाल दूसरे नन्ददुलारे वाजपेयी, तीसरे हरिहरनाथ टडन और चौथे श्रीधरसिंह। इन चारो के स्वभाव में कोई परिवर्तन नहीं हुआ है। वे अब तक मुझे उसी दृष्टि से देखते हैं जिस दृष्टि से वे अपने पठनकाल मे देखते थे। इन चारो की मेरे प्रति अत्यंत श्रद्धा और भक्ति है। इनमें से दो ने मेरे सहयोग में कई काम किए हैं, जिनका उल्लेख यथास्थान किया जायगा। मैं इसना और कह देना चाहता हूँ कि इनके प्रति मेरे भाव भी अत्यंत स्नेहमय हैं और मैं यथाशक्ति इनकी सहायता करने से कमी पराङ्मुख भी नहीं हुआ।
अधिकांश विद्यार्थी मुझे ऐसे मिले हैं जो अपने स्वार्थसाधन में कोई बात उठा नहीं रखते थे। इनमें से किसी-किसी को वो मैंने महीनों २०) मासिक अपने पास से दिया और अपने मित्रों से दिलाया, पर इनमे से ऐसे नरपिशाचो से भी मुझे काम पड़ा है जो अपने स्वार्थसाधन करने में मेरा अनिष्ट करने से भी नहीं हिचके। हिंदू-विश्वविद्यालय में ही ऐसे विद्यार्थी हो ऐसी बात नहीं है। मुझे कई बेर मौखिक परीक्षा लेने के लिये आगरा जाना पड़ा है। वहाँ