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मेरी आत्मकहानी
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है। एक दिन बाल गंगाधर तिलक की आत्मा आई । उन्होने मुझे आदेश दिया कि भारतीय भाषाओं में से आधुनिक मुख्य-मुख्य भाषाओं और उनके साहित्य का संक्षिप्त इतिहास एक पुस्तक मे संग्रह करो। मैंने कई वेर इसको पूर्ण करने का उद्योग किया पर सफलता न पा सका । यहाँ इसका उल्लेख इसलिये कर दिया कि कोई देशभक्त विद्वान् तिलक महोदय के इस आदेश को पूरा करे। (२)सन् १९२६ के फरवरी मास में मेरे तृतीय पुत्र सोहनलाल का विवाह कलकत्ते के प्रसिद्ध रईस राजा वावू दामोदरदास वर्मन के चतुर्थ पुत्र वाचू मधुसूदनदास वर्मन की ज्येष्ठा कन्या से हुआ। इस अवध के स्थिर करने का समस्त श्रेय मेरे ज्येष्ठ पुत्र कन्हैयालाल को है । उसी ने मुझ पर जोर देकर इस सबंध को स्थिर कराया । समर्था मलें तो मधु बाबू जैसे सजन मिले। इनके स्वभाव, आचार, विचार तथा व्यवहार पर मैं मुग्ध हूँ। मेरे प्रति इनका मी व्यवहार सर्वथा स्लाथ्य है। (३) सन् १९२६ के मार्च मास में मेरे ज्येष्ठ पुत्र कन्हैयालाल का देहांत कलकत्ते में हुआ। उसकी वही पुरानी बीमारी, अॅतड़ियो की कालिक, घातक हुई । डाक्टरों ने यह सम्मति दी कि इसकी एक मात्र औपध शल्य-चिकित्सा है। मेडिकल कालेज मे इस चिकित्सा के लिये मधु बाबू उसे ले गए। पर चिकित्सा होने के पूर्व ही हुद्गगति के रुक जाने से उसका शरीरांत हो गया। यह मेरा सबसे योग्य लड़का था। इस पर मुझे बहुत कुछ भरोसा और आशा थी। इसकी मृत्यु से मुझे घड़ा का लगा, जिसको मैं अब तक न संभाल सका।