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पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/२५६

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मेरी आत्मकहानी
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एक बात आपने बहुव ठीक कही। वह यह कि मैं डाक्टर की आनरेरी उपाधि मिलने के नियम नहीं जानता। भगवन्, मुझे उन नियमो की जानकारी की मुतलक जरूरत नहीं । जिसे जिस चीज की प्राप्ति की जरूरत ही नहीं, वह उसकी प्राप्ति के नियम जानने की यदि चेष्टा न करे तो आश्चर्य की बात नहीं। जानें वे लोग जो उसकी प्राप्ति की ताक मे हो। मैं यहाँ देहात में कुछ काम करता है। उसके उपलक्ष मे जिले के हाकिम मेरा अभिनदन करना चाहते थे। पर मैंने इनकार कर दिया। जरा आप अपने कोप को शांत कीजिए। किसी को डाक्टर की पदवी दे डालने का अधिकार मुझ नाचीज को नहीं, यह मै बखूबी जानता हूँ। और हो भी तो आप उसे मेरे हाथ से भला क्यों लेने लगे। मेरा मतलब सिर्फ यह था कि अगर किसी ने मुझे डाक्टर की पदवी देने की इच्छा भी प्रकट की तो मैं उसको स्वीकार न करूंगा और कह दूँगा कि इसकी प्राप्ति के अधिकारी बाबू श्यामसुंदरदास मुझसे कई गुना अधिक हैं। देना ही है, तो उन्हें दी जाय । मुझे आप इस इतने अधिकार से तो वंचित न कीजिए। आप मेरे विषय में सब कुछ कहे, पर मैं आपके विषय मे कुछ भी न कह सकूं—यह तो सरासर जुल्म है। खैर, अगर यहां भी मुझसे ही गलती हो गई हो, तो आप पुनर्वार मुझे क्षमा करे। अतिम प्रार्थना यह है कि आप अपने मानदंड से मेरे हृदय की नाप-जोख न करे। प्रार्थी 'मला क्यो म०प्र० द्विवेदी