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मेरी आत्मकहानी
 

पर नियुक्त भी किए गए थे। साराश यह कि मेरी सम्मति में 'श्रमि- नंदन' की कामना उन्हीं में प्रचल है जिन्हें कदाचित् यह विश्वास नही कि उनके पीछे उनकी कृतियां उनकी स्मृति को चिरस्वायी बनाये रहेगी। प्रेमी यशोलिप्मा आदरणीय नही है। हमे तो उपंजा के भाव मे सदा देखने में ही कन्याण है। (११) थोडे वर्ष हुए जब काशी की म्युनिसिपैलिटी नोड दी गई थी और उसके कार्यों का परिचालन एक विशेष सरकारी नौकर के हाथ बनारस के कमिश्नर की देख-रेख में दिया गया था। उस समय के कमिश्नर हास्टर पन्नालाल से मेरा परिचय था। उन्होंने एक दिन मुझसे कहा कि बनारस की सड़कों के नाम यहाँ के विशिष्ट लोगों के नाम पर रखे जाये तो अच्छा हो। उन्होंने मुझसे पूछा कि किन किन लोगों के नामो पर किस किस सड़क का नामकरण किया जाय । मैने कहा कि तुलसीदास, भारतेंदु हरिश्चंद्र तया कबीर आदि के नामो से सड़कें अकित कर दी जायॅ। यह कार्य हो गया है। पर मुझे खेद है कि गोस्वामी तुलसीदास का उचित आदर नहीं किया गया। उनका नाम एक छोटी-सी गली पर लगाया गया है जो सवथा ‌ उपहास्य है। तुलसीदास-सा दूसरा कवि नहीं हुआ। इसके लिये वो गोदौलिया की चौमुद्दानी से लेकर अस्सीघाट तक लंबी सड़क का नाम तुलसी रोड होना चाहिए।

  • पंडित श्यामविहारी मिश्र का अभी वक अभिनदन नहीं हुआ है,

पर क्या आधुनिक हिंदी-साहित्य के इतिहास में उनकी कृतियों की उपेक्षा की जा सकती है या उनका विस्मरण हो सकता है ?