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मेरी आत्मकहानी
 


सवत् प्राय व्यय १५९३ १३३८०) १७७८ १९९४ ३६९ ४३३ १९९५ ३२५० ११५३

          ८४९६11-       १५४२०॥

ये आंकडे सभा की रिपोर्ट से लिए गए हैं। प्रारंभ में अवश्य सजाने का सय सामान इकट्ठा करने में बहुत व्यय हुआ। इस ममय सभा के प्रधान मनो वायू माघोप्रसाद जी थे। इनका मेग स्नेह बहुत पुराना है। वे स्वभाव के दृढ़ व्यक्ति हैं। नियम के प्रतिकूल कोई काम हो जाना इनके रहते असंभव है। परंतु,मंवत् १९८८ में राय कृष्णदास यह समझकर प्रधानमंत्री चुने गए कि कला-भवन और सभा का सब काम एक आदमी के हाथ में रहने से मर्प की आशंका कम हो जायगी और काम सुचारु रूप से चलेगा। सवत् १९८९ में भी वे प्रधान मंत्री चुने गए।

सबत् १९८६ की सभा की रिपोर्ट में लिखा है- इसकी (कला-मवन की) एक सचित्र सूची वैयार हो रही है जो शीघ्र ही प्रकाशित की आयगी।"

इस बात को आज ग्यारह वर्ष हो गए पर अभी तक यह सूची नहीं तैयार हुई। इन ग्यारह वर्षों में कई बार यह प्रश्न समा में उठा और सूची बनाने के लिये व्यय भी स्वीकार हुआ, पर सूची न बनी। इस रहस्य का वात्पर्य समझना कठिन है और अनुमान से काम लेना निरापद नहीं है । एक पत्र (१५-७-३६) में राय कृष्णदास ने सभा को लिखाया था-