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मेरी आत्मकहानी
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उनका कृतज्ञ हूँ। अब अनेक मित्रों में से कितने ही स्वर्गवासी हो चुके हैं। कुछ थोड़े-से अभी तक इस संसार में वर्तमान हैं और मिल जाने पर पुराने संस्कारो तथा कार्यों की स्मृति को जागरित कर देते हैं। इन सब मित्रा से, जिनका मैं ऊपर उल्लेख कर चुका हूँ, सदा एकरस भाव बना रहा।

(१६) मेरे जीवन में दो बातें मुख्यतया विशेषता रखती हैं । एक तो मेरा जीवन सदा संघर्ष में बीता। विरोध का सामना करने मे,मुझे प्रयत्नशील रहना पड़ा। विरोध तथा कटु आलोचना में भी जो वात प्राह होती थी उसे मै सहर्प ग्रहण कर लेता था, पर अपने ध्येय से कभी चल-विचल न होता था। यही कारण है कि मैंने जितने काम हाथ मे लिए उनमें आशातीत सफलता प्राप्त हुई, पर साथ ही यह वात भी हुई कि व्यक्तिगत उद्योगों में जिनके द्वारा मैं अपनी निजी स्थिति सुधारने मे दत्तचित्त रहा--मुझ प्राय असफलता ही हुई। दूसरी विशेष बात मेरे जीवन मे यह हुई कि वैयक्तिक रूप से मैने जिन जिन की सहायता की उनमें से अधिकांश प्रायः कृतन्त्र सिद्ध हुए और अपने स्वार्थ के आगे मुझका हानि पहुंचाने में उन्हें तनिक भी. संकोच न हुआ। गृहस्त जीवन में भी मुझे प्राय असूख और यशांति ही मिली, पर मैं अपने कर्तव्य-पालन से कभी विचलित न हुआ । फिर भी सब बातो पर एक साधारण दृष्टि डालने से मै अपने को बड़ा भाग्यशाली समझता हूँ। यह कम लोगो के भाग्य में रहता, है कि जिस बीज को वे बोते हैं उसे पेड़ वृक्ष के रूप मे उगते,,पल्लवित, पुष्पित तथा फलान्वित होते देख सकें । मुझे ऐसा सौभाग्य