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मेरी आत्मकहानी
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हुआ है जिसने सभा की सेवा के लिये किसी प्रकार का पुरस्कार स्वीकार किया हो। मेरे विचार में पारिश्रमिक देकर काम कराना, अनुचित नहीं है, पर रायल्टी लेकर काम करनेवालो का पदाधिकारी होना या प्रबंध समिति का सदस्य बनना सवथा अनुचित और अवाउनीय है। इससे वह मार्ग खुल जाने की आशंका है जिससे सभा के अधिकारियो तथा प्रबंध समिति के सदस्यों में क्रमशः ऐसे लोग भर जायेंगे जो अपने स्वार्थसाधन को ही अपना ध्येय मानेंगे और सभा तथा उनके द्वारा हिंदी को सेवा गौण हो जायगी। अतएव मैं सभा की इस नीति का घोर विरोध करता हूँ। आशा है कि सभा मुझसे सहमत होगी।

"प्रार्थना है कि आप इस पत्र को वार्षिक अधिवेशन मे उपस्थित कर देंगे और जो कुछ निश्चय हो उसकी सूचना मुझे देंगे।"

ऊपर जो कुछ लिखा गया है उसका सम्बंध पंडित रामचन्द्र मिस्र को उनके इतिहास पर २० रुपया सैकड़ा रायल्टी देना तथा उनका सभापति चुना जाना और कुछ महाशयो का प्रबंध समिति का सदस्य बनाना है अधिवेशन के एक दिन के अनंतर मिला जिससे वे उसे वार्षिक अधिवेशन में उपस्थित न कर सके। अब तक (१५-८-४०) यह पत्र कही उपस्थित किया गया या नहीं इसकी मुझे कोई सूचना नहीं मिली है। अपने कार्य को नियमानुकूल बनाने के लिये ४७ वार्षिक अधिवेशन में उक्त नियम पर यह टिप्पणी लगाकर एक Vahdnting Act पास किया गया-"सभा के लिये पुस्तकों का लेखन, संपादन,