सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/२८९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२८२
मेरी आत्मकहानी
 

संकलन, संशोधन और अनुवाद व्यापारिक कार्य न समझा जायगा।"

इसके अनंतर एक दिन पंडित रामनारायण मिश्र से भेंट हुई और इस विषय पर बातचीत हुई तो यह सलाह ठहरी कि पत्र लिखकर डॉक्टर सच्चिदानंदसिंह से पूछा जाय कि यह कार्य वैध है या अवैध। मैंने इसके लिये एक पांडुलिपि तैयार की, जिसे मैंने मिस्र जी के पास भेज दिया। पंडित जी ने उसे स्वीकार नहीं किया और एक दूसरी पांडुलिपि तैयार करके मेरे पास भेजी। मेरे पत्र और पंडित जी के पत्र में मार्के का अंतर था। मेरे पत्र का मुख्य अंश यह है—

The words व्यापारिक संबंध is liable to be interpreted under the four following heads (1) Printers, (2) Booksellers, (8) Authors who are paid a royalty and 14) Authors who are paid a lump sum for their work There is no difference of opinion in regard to (1) and (2) but in regard to (8) and (4) there is a sharp difference of opinion Some people say that items (3) and (1) come under व्यापारिक संबंध, while others say that item (8) comes under it and not item (4) in order to make this point clear the Sabha recently added a footnote to the words व्यापारिक सम्बंध This explanation is ambiguous पंडित जी ने अपने पत्र में जो लिखा उसका यह अंश विचारणीय है—"There are two opinions about this There are some