पृष्ठ:मेरी आत्मकहानी.djvu/२९१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
२८४
मेरी आत्मकहानी
 

काम में लगा रहूँ सभा की उन्नति अथवा अवनति उसके वर्तमान तथा भावी कार्यकर्ताओं एव सभासदो पर निर्भर रहेगी। इसके अतिरिक्त मेरा मतभेद एक सिद्धांत को लेकर हुआ, पर कुछ महानु-मावों ने इसे वैयक्तिक रूप देने का उद्योग किया।

अतः में ईश्वर से यही प्रार्थना है कि मेरे विचार मे भ्रम हो गया है तो यह उसकी कृपा है, पर पंडित रामनारायण मिश्र और उनके सहयोगियों को भ्रम हो गया हो तो वे उस भ्रम के शीघ्र दूर करने की कृपा करें जिसमें यह सभा अनंत काल तक जीवित रहकर हिंदी भाषा और साहित्य की सेवा कर सके। मेरा दृढ़ विश्वास है कि विना बलि दिए कोई कार्य ठीक नहीं होता। यहाँ स्वार्थ की बलि देना ही हमारा ध्येय होना चाहिए। अवश्य जो सहायता के योग हैं उनकी सहायता करनी चाहिए, पर नीति-निर्धारण और कार्य-संचालन में उनका हाथ न होना चाहिए।

(१८) इस वर्ष गृहस्थीन्संधी कार्यों में निम्नलिखित बातें उस्लेखनीय हैं—

अप्रैल सन् १९३९ में पुत्री कमलादेवी का विवाह हुआ तथा मेरे पौत्र ब्रजेंद्रकुमार का यज्ञोपवीत संस्कार हुआ और नरेंद्र-कुमार की चोटी उतरवाई गई। जुलाई सन् १९४० में मेरे पुत्र माधवलाल का विवाह हुआ। १९ मई सन् १९४० को मेरे पुत्र गोपाललाल के यहाँ कन्या उत्पन्न हुई और ३ अगस्त १९४० को सोहनलाल के यहाँ पुत्र उत्पन्न हुआ। [२६-८-४०]

॥समाप्त॥